डेरी गड़ाई रस्म- बस्तर दशहरा में पाटजात्रा के बाद दुसरी सबसे महत्वपूर्ण रस्म होती है डेरी गड़ाई रस्म। पाठ-जात्रा से प्रारंभ हुई पर्व की दूसरी रस्म को ‘डेरी गड़ाई’ कहा जाता है। इस रस्म में एक खम्बे की स्थापना की जाती है। हर वर्ष हरियाली अमावस्या को बस्तर दशहरा की शुरूआत पाटजात्रा की रस्म से होती है, वहीं पाटजात्रा के बाद डेरी गड़ाई की रस्म दुसरी बेहद महत्वपूर्ण रस्म होती है।
पाटजात्रा के बाद बस्तर दशहरे का सबसे महत्वपूर्ण रस्म डेरी गड़ाई रस्म होता है। इस रस्म के बाद ही रथ निर्माण के लिए लकड़ी लाने के साथ रथ निर्माण का सिलसिला शुरू होता है। इस रस्म के अनुसार बस्तर जिले के ग्राम बिरिंगपाल के जंगल से साल प्रजाति की दो शाखा युक्त लकड़ी, (स्तम्भनुमा लकड़ी का लगभग 10 फुट का ऊँचा लकड़ी) लाई जाती है इसे ही डेरी कहते है।
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जिसे परम्परा के अनुसार दशहरा पर्व के प्रारंभ होने के पूर्व स्थानीय सिरहासार भवन में स्थापित की जाती है।डेरी स्थापित करने के लिए 15 से 20 फीट की दूरियों पर दो गढ्ढे किए जाते हैं, इन गढ्ढों में जनप्रतिनिधियों और दशहरा समिति के सदस्यों की उपस्थिति में पुजारी के द्वारा डेरी में हल्दी, कुमकुम, चंदन का लेप लगाकर दो सफेद कपड़े बाँधकर पूजा सम्पन्न किया जाता है।
इन गढ्ढों पर डेरी स्थापित करने के पूर्व जीवित मोंगरी मछली और अण्डा छोड़ी जाती है तथा फूला लाई डालकर डेरी स्थापित की जाती है। इसकी प्रतिस्थापना ही डेरी गड़ाई कहलाती है। इस शाखा-युक्त डेरी के गड़ाई को एक तरह से मण्डापाच्छादन का स्वरूप माना जाता है।
दशहरा पर्व में विभिन्न रस्मों के दौरान दी जाने वाली मोंगरी मछली की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी रियासत काल से समरथ परिवार को दी गई है। इसी क्रम में डेरी लाने का कार्य बिरिंगपाल के ग्रामीणों के जिम्मे होता है। इस डेरी की पूजा-पाठ के साथ स्थापना करके दंतेश्वरी माता से विश्व प्रसिद्ध दशहरा रथ के निर्माण की प्रक्रिया को शुरू करने की इजाजत ली जाती है.
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मान्यताओं के अनुसार रस्म के बाद से ही बस्तर दशहरा पर्व के लिए रथ निर्माण का कार्य शुरू किया जाता है. करीब 400 साल पुरानी परंपरा का निर्वहन आज भी पूरे विधि विधान के साथ किया जा रहा है. उल्लेखनीय है कि विश्वविख्यात बस्तर दशहरा के रथ के निर्माण की जवाबदारी वर्षों से बेड़ाउमरगांव एवं झारउमरगांव के बढ़ईयों द्वारा संपन्न कराई जाती है।
रथ निर्माण के लिए कौन सी लकड़ी का उपयोग किया जाता है?
रथ निर्माण में साल और तिनसा प्रजाति की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। तिनसा प्रजाति की लकड़ी से एक्सल (अचाँड या अच्छांड) बनता है तथा शेष रथ निर्माण के लिये अन्य सारे काम साल व धामन प्रजाति की लकड़ियों से पूरी की जाती है। अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।
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