डंडारी नृत्य-बस्तर के धुरवा जनजाति के द्वारा किये जाने वाला नृत्य है यह नृत्य त्यौहारों, बस्तर दशहरा एवं दंतेवाड़ा के फागुन मेले के अवसर पर देखने को मिलता है यह नृत्य बस्तर में विलुप्त होने की कगार पर है। दंतेवाड़ा के मारजूम चिकपाल के धुरवा जनजाति के ग्रामीणों ने आज भी इस डंडारी नृत्य को आने वाली पीढ़ी के लिये सहेज कर रखा है। यह नृत्य बहुत हद तक गुजरात के मशहूर डांडिया नृत्य से मेल खाता है।
डंडारी नृत्य में बांस की खपचियों से एक दुसरे से टकराकर ढोलक एवं तिरली के साथ जुगलबंदी कर नृत्य किया जाता है। तिरली बाँसुरी को कहा जाता है। यह नृत्य डांडिया नृत्य से अलग है, डांडिया में जहां गोल गोल साबूत छोटी छोटी लकड़ियों से नृत्य किया जाता है। इस नृत्य में नर्तको के साथ वादक दल होता है। वादक दल मे 7 से 8 व्यक्ति सिर्फ़ ढोल ही बजाते है, और केवल एक व्यक्ति तिरली वादन करता है।
बांसूरी की धुन पर नर्तक बांस की खपचियों को टकराकर नृत्य करते है तिरली के स्वरो को साधने के लिये बहुत अनुभव की जरूरत होती है। तिरली वादक पीढियो से ही तिरली बजाने की कला एक दुसरे को सिखाते आ रहे है।
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बांस की खपच्चियों को नर्तक स्थानीय धुरवा बोली में तिमि वेदरीए एंव बांसुरी को तिरली के नाम से जानते हैं। यही वजह है कि दल में ढोल वादक कलाकारों की तादाद ज्यादा होती है जबकि इक्के.दुक्के ही तिरली की स्वर लहरियां सुना पाते हैं। और नृत्य में बांस की खपचियों से एक दुसरे से टकराकर ढोलक एवं बांसूरी के साथ जुगलबंदी कर नृत्य करते है।
कहीं कही बांस की खपचियों के जगह बारहसिंगा के सींगो का भी उपयोग किया जाता रहा है। इस नृत्य के समूह में एक सीटी वादक भी रहता है जिससे सीटी की आवाज सुनते ही नृत्य करने के तरीको में बदलाव कर मस्ती के साथ नाचना प्रारंभ कर दिया जाता है।
डंडारी नृत्य कब किया जाता है?
डंडारी नृत्य बस्तर में मुख्यत धुरवा जनजाति के द्वारा त्यौहारों, बस्तर के दशहरे एवं दंतेवाड़ा के फागुन मेले के अवसर पर आयोजित किया जाता है। डंडारी नाच भी रास परंपरा की ही देन है। अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।
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