बस्तर के हस्तशिल्प एंव शिल्पकला की रोचक जानकारी | Bastar Hastshilp Shilpkala

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बस्तर हस्तशिल्प एंव शिल्पकला Bastar Hastshilp Shilpkala:- बस्तर अंचल के हस्तशिल्प, चाहे वे आदिवासी हस्तशिल्प हों या लोक हस्तशिल्प, दुनिया-भर के कलाप्रेमियों का ध्यान आकृष्ट करने में सक्षम रहा हैं। बस्तर शिल्प की दीवार दुनिया भर में कला उत्साही और विशेषज्ञ का ध्यान आकर्षित करते हैं।

आज हम बात कर रहे है भारत के आदिवासी कलाओं में बस्तर की आदिवासी परंपरागत कला कौशल प्रशिद्ध बस्तर हस्तशिल्प एंव शिल्पकला Bastar Hastshilp Shilpkala के बारे में।

बस्तर में आदिवासी बहुल अंचल की आदिम संस्कृति की सोंधी महक बसी रही है। यह शिल्प-परंपरा और उसकी तकनीक बहुत पुरानी है। बस्तर को जनजातीय समुहों का प्रमुख कला कहा जाता है जो भारत के बस्तर-क्षेत्र के आदिवासियों द्वारा प्रचलित है और अपने अद्वितीय कलाकृतियों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। बस्तर जिला वनों से ढका हुआ है जो कलाकृतियों आमतौर पर जनजातीय समुदाय की ग्रामीण जीवनशैली को दर्शाती है।

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बस्तर में आदिवासी ग्रामीण निश्चित रूप से भारत के पहली धातु स्मिथ थे और वे अभी भी प्राचीन अभ्यास के साथ जारी हैं। ये जनजातीय कलाकार धातु की पुरानी प्रक्रियाओं के माध्यम से, जीवन, प्रकृति और देवी देवताओं के अनूठे दृश्य को लोहे में उकेरते हैं । उनकी प्रक्रिया सरल है – इसमें मूल रूप से धातु को फोर्जिंग और हथौड़ा द्वारा रूप दिया जाता है। बस्तर के आदिवासी समुदाय अपनी इस दुर्लभ कला को पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित करते आ रहे है।

बस्तर में हस्तशिल्प एंव शिल्पकला को मुख्य रूप माना गया है जो इस प्रकार है:-

  • मिट्टी शिल्प
  • काष्ठ शिल्प
  • बांस शिल्प
  • पत्ता शिल्प
  • कंघी कला
  • धातु कला
  • घड़वा कला
  • लौह शिल्प
  • तीर धनुष कला
  • प्रस्तर शिल्प
  • मुखौटा कला
1. मिट्टी शिल्प

बस्तर का मिट्टी शिल्प अपनी विशेष पहचान रखता है। इसमें देवी देवताओं की मूर्तियाँ, सजावटी बर्तन, फूलदान, गमले, और घरेलु साज-सज्जा की सामग्रियां बनायी जाती है। बस्तर में मिट्टी शिल्प अपनी अपनी निजी विशेषताओं के कारण महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

2. काष्ठ शिल्प

बस्तर का काष्ठ शिल्प विश्व प्रसिद्ध है। काष्ठ शिल्प में मुख्य रूप से लकड़ी के फर्नीचरों में बस्तर की संस्कृति, त्योहारों, जीव जंतुओं, देवी देवताओं की कलाकृति बनाना, देवी देवताओं की मूर्तियाँ, साज सज्जा की कलाकृतियाँ बनायी जाती है। यहां के मुड़िया जनजाति का युवागृह घोटुल का श्रृंगार, खंभे, मूर्तियां, देवी झूले, कलात्मक मृतक स्तंभ, तीर-धनुष, कुल्हाड़ी आदि पर सुंदर बेलबूटों के साथ पशु पक्षियों की आकृतियां आदि इसके उत्कृष्ठ उदाहरण है।

3. बांस शिल्प

बस्तर में बांस शिल्प के अनेक परंपरागत कलाकार है। बांस कला में बांस की शीखों से कुर्सियां, बैठक, टेबल, टोकरियाँ, चटाई, और घरेलु साज सज्जा की सामग्रिया बनायीं जाती है। विशेष रूप से बस्तर जिले की जनजातियों में बांस की बनी कलात्मक चीजों का स्वयं अपने हाथों से निर्माण करते हैं। कमार जनजाति बांस के कार्यों के लिए विशेष प्रसिद्ध हैं। बांस कला केन्द्र -बस्तर में है।

4. पत्ता शिल्प

पत्ता शिल्प के कलाकार मूलतः झाडू बनाने वाले होते हैं। पत्तों से अनेक कलात्मक और उपयोगी वस्तुएं बनायी जाती है। बस्तर, में ये शिल्प अधिक देखने को मिलता है। पनारा जाति के लोग छींद के पत्तों का कलात्मक उपयोग करते हैं।

5. कंघी कला

कंघी कला बस्तर के मुरिया जनजाति कंघियों में घड़ाइ्र के सुंदर अंलकरण के साथ ही रत्नों की जड़ाई एवं मीनाकरी करने में सिद्ध हस्त है। जनजाति जीवन में कंघिया सौन्दर्य एवं प्रेम का प्रतीक मानी गई है। छत्तीसगढ़ की राज्य में कंघी बनाने का श्रेय बंजारा जाति को दिया गया है।

6. धातु कला

धातु कला में ताम्बे और टिन मिश्रित धातु के ढलाई किये हुए कलाकृतियाँ बनायीं जाती है, जिसमे मुख्य रूप से देवी देवताओं की मूर्तियाँ, पूजा पात्र, जनजातीय संस्कृति की मूर्तियाँ, और घरेलु साज-सज्जा की सामग्रियां बनायीं जाती है। छत्तीसगढ़ में धातुओं को शिल्प कला में परिवर्तित करने का कार्य बस्तर की घड़वा जाति, सरगुजा की मलार, कसेर, भरेवा जाति तथा रायगढ़ की झारा जाति करती है। सरगुजा में मलार जाति के लोग श्रेष्ठ कारीगर माने जाते हैं। मलार जाति का व्यवसायिक देव लोहा झाड़ है। छत्तीसगढ़ का यह जनजातीय जीवन धातु मूर्ति कला के क्षेत्र में प्रख्यात है।

7. घड़वा कला

घड़वा शिल्प के अंतर्गत देवी व पशु-पक्षी की आकृतियां तथा त्यौहारों में उपयोग आने वाले वाद्य सामग्री तथा अन्य घरेलू उपयोग वस्तुएं आती है। बस्तर की प्रमुख शिल्पकार कसेर जाति के लोग अपनी परंपरागत कलात्मक सौंदर्य भाव के लिये ख्याति लब्ध है।

घड़वा कला धातुओं (पीतल, कांसा) और मोम को ढालकर विभिन्न वस्तुओं, आकृतियों को गढ़ने की घड़वाकला छत्तीसगढ़ में पर्याप्त रूप से प्रचलित रही। बस्तर की घड़वाजाति का तो नाम ही इस व्यवसाय के कारण घड़वा है। जो घड़वा शिल्प कला में प्रसिद्ध है।

बस्तर के मुख्य घड़वा शिल्पकार- श्री पेदुम, सुखचंद, जयदेव बघेल, मानिक घड़वा है जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मानित किया गया हैं। कलाकार : पदुमलाल, मनिया धड़वा, सुखदेव बघेल, जयदेव बघेल

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8. लौह शिल्प

बस्तर में लौह शिल्प का कार्य लोहार जाति के लोग करते है। बस्तर में मुरिया माड़िया आदिवासियों के विभिन्न अनुष्ठानों में लोहे से बने स्तम्भों के साथ देवी-देवता, पशु-पक्षियों व नाग आदि की मूर्तियां प्रदत्त की जाती है।

9. तीर धनुष कला

धनुष पर लोहे की किसी गरम सलाख से जलाकर कालात्मक अंलकरण बनाने की परिपाटी बस्तर के मुरिया आदिवासी में देखने को मिलता है।

10. प्रस्तर शिल्प

बस्तर इस शिल्प के मामले में भी विशेष स्थिति रखता है। यहां का चित्रकूट क्षेत्र तो अपने प्रस्तर शिल्प के लिये विशेष रूप से प्रसिद्ध है। जंहा कई प्रकार के प्रस्तर शिल्प प्राप्त किया जा सकता हैं।

11. मुखौटा कला

मुखौटा मुख का प्रतिरूप है। बस्तर के मुरिया जनजाति के मुखौटे आनुष्ठानिक नृत्यों के लिये बनाये जाते हैं। भतरा जनजाति के भतरानाट में विभिन्न मुखौटों का प्रचलन है। मुखौटा एककला है। छत्तीसगढ़ के आदिवासियों में नृत्य, नाट्य, उत्सव आदि अवसरों में मुखौटा धारण करने की परंपरा है।

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छत्तीसगढ़ बस्तर के प्रमुख शिल्पकार

1. गोविन्द राम झारा:-

रायगढ़ जिले के शिल्पग्राम एकताल के निवासी गोविन्दराम झारा जनजाति शिल्प के पर्याय माने जाते हैं। ये देश विदेश में रायगढ़ के इस एकताल ग्राम के शिल्प को चरम उत्कर्ष पर संस्थापित करने वाले प्रथम पुरोधा थे।

2. रामलाल झारा:-

रायगढ़ के एकताल ग्राम के निवासी बेलमेटल के निपुर्ण कलाकार बेलमेटल से मूर्तियां निर्मित करते हैं।

3. जयदेव बघेल:-

बस्तर क्षेत्र के ख्याति लब्ध शिल्पकार इनके शिल्प में जनजाति परंपरा अपने चरम उत्कर्ष को स्पर्श करती है। इनको मास्टर, क्राफ्ट्समैन नेशनल अवार्ड मिल चुका है।

4. श्रीमती सोनाबाई:-

राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त सोनाबाई मिट्टी शिल्प की निपुर्ण कलाकार है। सरगुजा के लखनपुर के पास अपने गांव में सोनाबाइ्र ने मिट्टी शिल्प की निराली दुनिया बसायी है।

5. वृंदावन:-

जन्म – बस्तर संभाग के नगरनार में प्रमुख मिट्टी शिल्पकार

6. क्षितरूराम:-

बस्तर संभाग निवासी मृत्तिका शिल्पकार मृत्तिका शिल्पों में कालजयी भावनाओं का प्रस्फुटन हुआ है।

7. देवनाथ:-

बस्तर संभाग के ग्राम एड़का निवासी देवनाथ का मृत्तिका शिल्प चमत्कारी माना जाता है।अलंकृत हाथी बनाने में विशेष ख्याति अर्जित की।

8. शम्भू:-

नारायणपुर जिले मृत्तिका शिल्पकार

9. चंदन सिंह:-

पैतृक ग्राम – नगरनार राष्ट्रीय स्तर के मृत्तिका शिल्पकार

10. मानिक घड़वा :-

घड़वा शिल्प बस्तर के आदिम भावनाओं का कलात्मक बिम्ब है, जिसे मानिक घड़वा ने अपनी प्रतिभा से आसीम आयाम दिया।

11. अजय मंडावी :-

कांकेर निवासी लोकप्रिय शिलपकार हैं। इनका कला सौंदर्य नवीन आयामों को स्पर्श करता है।

बस्तर की लोककला, शिल्पकला, संस्कृति एवं अन्य स्थानीय कलाओं को देश दुनिया मे पहचान दिलाने हस्तशिल्प एंव शिल्पकला की रोचक जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।

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