नृत्य आदिम सभ्यता का सबसे खूबसूरत अंग है। इसकी खूबसूरती मधुर संगीत और आकर्षक पोशाक से पल्लवित होती है। नृत्य के मनमोहक पहलुओं को बस्तर के आदिवासियों ने आज भी कुछ इस तरह समेट रखा है जैसे हजारों सालों बाद भी उसमे वहीं ताजगी और आनंद के भाव प्रदर्शित होता है।
बस्तर अंचल में माड़िया व मुरिया सबसे अधिक हैं। यही कारण है कि वहां के सभी आदिवासियों के लिए सामान्य जन मुरिया माड़िया शब्द का प्रयोग करते हैं। पहाड़ को बस्तर में माड़ कहा जाता है। माड़ में रहने के कारण इनकी जाति माड़िया कहलाती है।
गोड़ी शब्द माड़ा का अर्थ वृक्ष होता है। वृक्ष वाले अर्थात माड़ा क्षेत्र में रहने के कारण इन्हें माड़िया कहा गया। गौर सिंग वाले माड़िया है जो नृत्य करते समय गौर (ब्राह्मण) नामक जंगली जानवर के सिंगों का मुकुट पहनते हैं जिसे गौर माड़िया नृत्य Gaur Madia Nritya कहा जाता है। बस्तर का गौर नृत्य- बहुप्रसारित, प्रचलित नृत्य है।
गौर माड़िया नृत्य Gaur Madia Nritya छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर, दँतेवाड़ा, बीजापुर एवं सुकमा जिलों मे निवास करने वाले माड़िया जनजाति के लोगों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है। माड़िया जनजाति (Madia Tribe) द्वारा इस नृत्य को बड़े ही हर्ष एवं उल्लास के साथ किया जाता है। यह नृत्य प्राय: विवाह आदि के अवसरों पर किया जाता है। इस नृत्य का नामकरण गौर भैंस के नाम पर हुआ है।
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गौर नृत्य करते समय माड़िया पुरुष नर्तक अपने सिर पर गौर का सींग युक्त शिरोभूषण धारण करते हैं। इस नृत्य में प्राय: अविवाहित माड़िया युवक-युवतियां भाग लेते हैं। गौर को माड़िया बोली में माओ या पेटमा कहा जाता है, बांस की खपचियों के आड़े-तिरछे अवस्था में गौर सिंग को बांधा जाता है। कौड़ियों की लटें निकाल कर इसका सौंदर्य बढ़ाया जाता है। मुख्य रूप से वैवाहिक समारोहों में यह गौर नृत्य किया जाता है।
गौर मुकुट
गौरसिंग वाला मुकुट तैयार करना श्रम व समय लेने वाला कार्य है। सींग दुर्लभ होता है, जिसे यह सींग नहीं मिलता वह जंगली भैंसों के सींग से काम चलाता है, शिरोभूषण बस्तर की पहचान है। सींग वाला गौर नृत्य जोशीला नृत्य होता है। गौर नृत्य में सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र है गौर के सींगो से बना हुआ मुकुट होता है।
गौर के चिकने काले सुनहरे सींगो को बांस की टोपी मे दोनो और बांध दिया जाता है। ऊपर की ओर भृंगराज पंछी के पंखों की कलगी तैयार कर बांध दी जाती है। मुख के सामने बिलकुल दूल्हे के सेहरे की तरह कौड़ियो की लड़ियां लगा दी जाती है जिससे नर्तक का चेहरा ढक जाता है।
गले में बड़ा सा ढोल लटकाकर लय ताल के साथ नृत्य किया जाता है। पुरुष गौर की तरह सिर हिलाते हुए वीरता का भाव लिए हुए नृत्य करता है। गौर नृत्य के लिए युवती भी सजती है, सर पर पीतल की लगभग चार इंच चौड़ी पट्टी पहनती है, जो ‘कुड्डू’ कहलाती है। माड़िये जो धनी होते हैं वे सोने की पट्टी पहनते है।
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नाक में नथ, कान में कर्णफूल, कंठीमाला, सूता, हाथों में अंगूठियां (महेल) गले में माला (रुपया) पहनती हैं। जिसके बाद महिलाएं हाथ में लोहे की छड़ से जमीन पर पटकते हुए पुरुष के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ती है। लोहे का 5-6 फुट लंबाई वाली छड़ उसमे लगी लोहे की पत्तियॉ छन छन की आवाज करते हुए ढोल की थाप के साथ सुर मिलाती हुई प्रतीत होती है।
यह मुकुट प्रकृति के राजमुकुट की तरह सुशोभित है। अब ना गौर है और ना ही इस तरह के नये मुकुट बनाए जाते है। ये गौर मुकुट अब यहां के आदिवासियों की सबसे अनमोल धरोहर है। इस नृत्य को यहां की भावी पीढ़ी ने बखूबी निभाया है इस कारण यहां के मेले मड़ई में गौर नृत्य धमक देखने को मिलती है। अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।
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