हम सभी मानते हैं कि किसी भी प्रान्त का खान -पान वहां की भौगोलिक स्थिति , जलवायु और वहां होने वाली फसलों पर निर्भर करता है। छत्तीसगढ़ एक वर्षा और वन बहुल प्रान्त है, यहाँ धान ,हरी भाजी -सब्जियां का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है और यही सामग्रियां यहाँ का मुख्य आहार हैं।
खान -पान की दृष्टि से भी छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में लोकप्रिय हैं परन्तु स्थानिय व्यंजनों और पकवानों में एकता है। इन्ही पकवानों में से एक है कद्दू जिसे बस्तर में कुम्हड़ा कहा जाता है। कद्दू प्रजाति के फलों को बस्तर में कुम्हड़ा कहते हैं।
यह अनेक प्रकार के होते हैं जैसे पेठा बनाने के लिए प्रयुक्त होने वाला सफ़ेद कद्दू जिसे रखिआ कुम्हड़ा कहा जाता है। सामान्य पीला कद्दू जिसे मीठा कुम्हड़ा कहते हैं। हरा कद्दू जिसे हरा कुम्हड़ा कहा जाता है। इन्हे पका कर इसे सब्जी के रूप मे उपयोग किया जाता है और इनकी पत्ती को भी सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है।
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रखिया कुम्हड़ा
आप सभी कुम्हड़ा से जरूर परिचित होंगे। सामाजिक कार्यक्रमों में आपने कुम्हड़े की सब्जी तो जरूर खाई होगी। वैसे कुम्हड़ा के कई प्रकार है जिनमें रखिया कुम्हड़ा प्रमुख है। कुम्हड़े के उपर राख की तरह परत चढ़ी होने के कारण उसे रखिया कुम्हड़ा कहा जाता है।
बस्तर में भी कुम्हड़े को लेकर कई तरह की मान्यतायें प्रचलित है। बस्तर में कुम्हड़े को बेहद ही सम्मानजनक स्थान दिया गया है। लोकमान्यता है की बस्तर में महिलायें रखिया कुम्हड़े को अपना बड़ा बेटा मानकर इसे काटने से बचती है। रखिया कुम्हड़ा काटना मतलब अपने बच्चे की बलि देना माना जाता है। इसलिये महिलायें कुम्हड़े को पुरूष से दो हिस्सों में कटवाती है उसके बाद ही उसे छोटे छोटे टूकड़ो में काटती है। जिसके बाद उसे उड़द दाल के साथ मिलाकर बड़ी बनाया जाता है जिसे सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है।
जब कुम्हड़े की सब्जी बनाई जाती है तो हमेशा मिल बांट कर ही खाई जाती है। प्रायः हर ग्रामीण, बाड़ी में कुम्हड़े की सब्जी जरूर लगाता है। मंदिरों में प्रतीकात्मक तौर पर कुम्हड़े की ही बलि दी जाती है। अपनी इन्ही विशेषताओं के कारण प्रतिवर्ष 29 सितम्बर को विश्व कुम्हड़ा दिवस भी मनाया जाता है। अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।
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