छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले के अंतर्गत फरसगांव से 30 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम बडे डोंगर की पहाड़ी पर मां दंतेश्वरी विराजमान हैं। यहां की परंपरा बस्तर दशहरा से मिलती जुलती है। बड़े डोंगर महाराजा पुरूषोत्तम देव के समय में बस्तर की राजधानी बनी पर इसका इतिहास इससे भी प्राचीन है। लोकमान्यताओं के अनुसार यह देवलोक है।
बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी का निवास स्थान प्रमुख रूप से मंदिर दंतेवाड़ा है। पहले बस्तर की राजधानी बडे डोंगर में माई जी का प्रमुख पर्व दशहरे का संचालन इसी मंदिर से होता था। चारों ओर पहाड़ियों व सुरम्य जंगलों के बीच स्थित बड़े डोंगर के हर पहाड़ पर देवी-देवताओं का वास है। आदिवासियों की मान्यता है कि 33 कोटि देवी-देवता यहां निवास करते हैं।
मान्यता है कि सतयुग में महिषासुर राक्षस ने इस देवलोक पर हमला कर त्राहि-त्राहि मचा दी तब देवताओं के आह्वान पर माता पार्वती देवी दुर्गा के रूप में प्रकट हुई। और दोनों के बीच संग्राम बडे डोंगर की पहाड़ी पर हुआ.. इस संग्राम के निशान के रुप में शेर का पंजा, भैंसा व माता के पगचिन्ह आज भी पहाड़ी के चट्टानों पर मौजूद हैं, जहां पूजा अर्चना होती है।
कालांतर में यह बस्तर के राजपरिवार के साथ आई आराध्य मां दंतेश्वरी की वास स्थली बनी और दंतेश्वरी माता यहीं से राजा के साथ दंतेवाड़ा गई। घास-फूस से बने मंदिर का जीर्णोद्धार 1940 में किया गया जिसमें श्रद्धालुओं की अटूट आस्था है और मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद यहां मांगने पर पूरी होती है।
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आज भी होता है राज्याभिषेक
रियासतकालीन किले और तोपखाने का भग्नावशेष इसकी ऐतिहासिकता की पुष्टि करते हैं। आज भी बस्तर राजपरिवार के किसी सदस्य की छठी, राज्याभिषेक सहित महत्वपूर्ण रस्म यहीं सम्पन्न होते हैं। मुख्य पहाड़ी पर स्थित विशाल चट्टान जिसे टूनटूनी पत्थर कहा जाता है.. यहां पत्थर से चोट करने पर अंदर झांझ बजने की आवाज सुनाई आती है।
पास में ही एक पहाड़ी स्थित है जिसे नकटी डोंगरी के नाम से जाना जाता है जंहा की चोटी पर हर पत्थर शंख की आकृति है और प्राचीन त्रिशूल और कमंडल भी मौजूद हैं। पहाड़ी की इस चोटी पर पत्थरों के बीच तालगुडरा में पानी साल भर सराबोर रहता है। महादेव पहाड़ी की चोटी पर शिव का भव्य मंदिर स्थित है जहां शिवरात्रि और श्रावण के महीने में दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं।
मां दंतेश्वरी का महिषासुर से वध इसी स्थल पर हुआ था ?
बड़े डोंगर गांव में स्थित पहाड़ के ऊपर चट्टानों में ऐसे निशान उभरे हैं जो हुबहु शेर के पंजे, भैंसे का सिंग और इंसानी पैर के तरह हैं। लोकमान्यता है की ये निशान ही इस किवदंती का आधार है कि इसी पहाड़ में दुर्गा मां ने महिषासुर का वध किया था। अपने पूर्वजों से सुनी कथाओं के आधार पर ग्रामीण बताते हैं कि महिषासुर पहाड़ों में रहने वाला दानव था और उसका बसेरा केशकाल से लेकर बड़े डोंगर तक फैली विशाल पर्वत श्रृंखलाओं में ही था।
जब महिषासुर के वध के लिए आदि शक्ति अवतरित हुईं। युद्घ के शंखनाद के बाद जब दोनों के मध्य जंग छिड़ी तो माता के तेज से आहत महिषासुर जान बचाने की नियत से घने जंगलों और पहाड़ों की ओर भागने लगा। पीछे चूंकि मां दुर्गा भी उसे दौड़ा रही थी लिहाजा भागते-भागते महिषासुर बड़े डोंगर के इसी पहाड़ के ऊपर पहुंच कर छिपने लगा। किवदंती के मुताबिक माता दुर्गा भी महिषासुर के पीछे पहाड़ में पहुंची और इसी पहाड़ के ऊपर दोनों के बीच निर्णायक युद्घ हुआ।
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आदि शक्ति दुर्गा मां द्वारा दानव महिषासुर के वध की कहानी और कथा पुराणों में आपने देखी व सुनी होगी… लेकिन ये कथा और पुराण ये नहीं बताते कि माता ने उक्त राक्षस का वध वास्तव में किस स्थान पर किया। आप यदि इस अनसुलझे वाक्य का समाधान चाहते हैं तो बस्तर का रुख कर सकते हैं।
जनश्रुति जिस इतिहास की ओर इशारा करती है उसकी माने तो दुर्गा जी ने कोंडागांव जिले में घनघोर जंगलों और पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य बसे बड़े डोंगर में महिषासुर का वध कर लोगों को उसके तथाकथित आतंक से मुक्ति दिलाई थी। बड़े डोंगर में पुराने समय में 147 तालाब पाये गये थे जो इसे विषेश तौर पर तालाबों की पवित्र नगरी के नाम से विख्यात करते है।
मां लिंगेश्वरी देवी आलोर
ग्राम पंचायत आलोर, जनपद पंचायत फरसगांव के अंतर्गत है। पंचायत की दांयी दिशा में अत्यंत ही मनोरम पर्वत श्रृंखला है। इस पर्वत श्रृंखला के बीचों-बीच धरातल से 100 मी. की ऊंचाई पर प्राचीनकाल की मां लिंगेश्वरी देवी की प्रतिमा विद्यमान है। लोकमान्यतानुसार मंदिर सातवीं शताब्दी का होना बताया जा रहा है। इस मंदिर के प्रांगण में प्राचीन गुफाएं स्थित है।
प्राचीन मान्यता के अनुसार वर्ष में एक बार पितृमोक्ष अमावस्या माह के प्रथम बुधवार को श्रद्धालुओं के दर्शन हेतु पाषाण कपाट खोला जाता है। सूर्योदय के साथ ही दर्शन प्रारंभ होकर सूर्यास्त तक मां की प्रतिमा का दर्शन कर श्रद्धालुगण हर्ष विभोर होते है।
कैसे पंहोचे-
जिला मुख्यालय कोंडागांव से जुगानी होते बड़े डोंगर पहुंच मार्ग है तथा राष्ट्रीय राजमार्ग 30 में स्थित फरसगांव से बड़े डोंगर पहुंच सकते है। बस तथा टैक्सी व ऑटो हमेशा उपलब्ध रहती है। अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।
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