ककसाड़ नृत्य एक धार्मिक नृत्य है जिसे करते समय नर्तक युवा अपने कमर में पीतल अथवा लोहे की घंटियां से बना कमरबंध, हिरनांग बांधे रहते हैं, इसके अलाव युवा अपने सिर पर पगड़ी, कलगी और कौड़ियों से श्रृंगार कर आकर्षक वेशभूषा अभिव्यक्त करते हैं।
यह नृत्य फ़सल और वर्षा के देवता ‘ककसाड़’ की पूजा के उपरान्त किया जाता है। यह एक मूलतः जात्रा नृत्य है इस लिए इसे जान्ना नृत्य भी कहते हैं। गांव के धार्मिक स्थल पर अबूझमड़िया आदिवासी जनजाति वर्ष में एक बार ककसाड़ यात्रा पर पूजा का आयोजन करते हैं।
ककसाड़ नृत्य के साथ संगीत और घुँघरुओं की मधुर ध्वनि, मांदरी की ताल, नृत्य को गति प्रदान करती है. एक रोमांचक वातावरण उत्पन्न होता है.. इस नृत्य के माध्यम से युवक और युवतियों को अपना जीवन साथी ढूंढने का अवसर भी प्राप्त होता है।
युवतियां छोटी आकार के मंजीरे,चिटकुल बजाते हुए मांदरी की थाप के साथ संगत करते हुए नृत्य करती हैं। आदिवासी जनजाति के ककसाड़ नृत्य, मांदरी और गेंड़ी नृत्य, अपनी गीतात्मक, सुंदर कलात्मक विन्यास के लिए काफी लोकप्रिय हैं।
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ककसाड़ नृत्य छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के नारायणपुर और कोंडागांव जिले के अबूझमड़िया आदिवासी जनजाति का एक विशेष पर्व है, जिसमें गोत्र-देव की पूजा की जाती है. इस अवसर पर यह नृत्य बड़े उत्साह से किया जाता है। करसाड नृत्य में नर्तक की रूप-सज्जा विशेष आकर्षक होती है। इसमें नृत्य संगिनी को प्रभावित करने के लिए विशेष प्रकार का नृत्य किया जाता है।
लिंगोपेन को प्रसन्न करने के लिए युवक और युवतियों अपनी साज-सज्जा करके सम्पूर्ण रात नृत्य-गायन करते हैं। पुरुष कमर में घंटी बाँधते हैं जबकि स्त्रियां सिर पर विभिन्न फूलों और मोतियों की मालाएं पहनती है। ककसार नृत्य का आयोजन वर्ष और फसलों के देवता ककसाड़ देवता के पूजा के उपरांत किया जाता है।
नृत्य में गाये जाने वाले गीतों, घुँघरुओं एवं वाद्ययंत्रों से निकलने वाले संगीत बहुत मधुर होते हैं। इस नृत्य के दौरान एक ही प्रकार की तुरही बजती रहती है, जिसे अकुम कहते हैं। अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।
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