घोटुल प्रथा बस्तर आदिवासी Ke Log Kaise Banate hai ?

घोटुल-प्रथा-बस्तर-आदिवासी-Ke-Log-Kaise-Banate-hai

घोटुल एक तरह का सामुदायिक स्थान को कहा जाता है, जिसमें पूरे गाँव के बच्चे व किशोर सामूहिक रूप से रहते हैं, यह छत्तीसगढ़ के बस्तर, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के पड़ोसी क्षेत्रों के मुरिया एवं माडिया गोंड समुदाय के लगभग सभी गाँव में होता है। यह मुरिया, माडिया एवं गोंड आदिवासियों के लिए एक शिक्षा, निर्णय, संचार, संस्कृति और धर्म से जुड़ा स्थान माना जाता है, व दूसरे शब्दों में घोटुल जनजातीय गाँवों का एक सामाजिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र होता है।

जंहा गांव के किनारे बनी एक मिट्टी की झोपड़ी होती है। वंहा शाम को लड़के-लड़कियां धीरे-धीरे एकट्ठे होने लगते हैं और वे ग्रुप में गाते हुए ही घोटुल तक पहुंचते हैं। लड़कों का ग्रुप अलग बनता है एवं लड़कियों का अलग होता है। कई बार घोटुल में दीवारों की जगह खुला मंडप भी होता है।

घोटुल सालों पहले बस्तर के मुरिया एवं माड़िया समुदाय के द्वारा अपने पारंपरिक ज्ञान को आगे बढ़ाने और गाँव में एकता कायम रखने के लिए घोटुल बनाए जाता था। जो लंबे समय तक जवानों एवं बुजुर्गों के लिए एक सामुदायिक स्थान रहा जिसका समय-समय पर अलग महत्व रहता था।

घोटुल प्रथा की कुछ महत्वपूर्ण बातें-

  • घोटुल प्रथा क्या है
  • बस्तर आदिवासी घोटुल
  • घोटुल प्रथा किस जनजाति में पाई जाती है
  • घोटुल किस जनजाति का युवागृह है
  • घोटुल पाटा गीत

घोटुल प्रथा क्या है ( Ghotul Pratha kya hai hindi )

घोटुल प्रथा यह प्रथा गोंड़ जनजाति के युवक-युवतियों का सामाजिक सांगठनिक स्वरूप है जहां युवा भावी जीवन की निर्णय, शिक्षा प्राप्त करते हैं, इन युवाओं को स्थानीय बोली में चेलिक तथा युवतियों को मोटयारी कहा जाता हैं, इस प्रथा को मुरिया एवं माडिया गोंड आदिवासियों के लिए एक शिक्षा, निर्णय, संचार, संस्कृति और धर्म से जुड़ा स्थान माना जाता है। इसमें नृत्य, गान जैसे- कई प्रकार के क्रिया-कलाप के माध्याम से किया जाता है।

यह भी पढें – बस्तर का प्रवेश द्वार केशकाल घाटी को क्यों कहा जाता है? जानिए……!

घोटुल प्रथा की अन्तर्गत बहुत सारे नियम होते है जो काफी कठोर होती है। इसके उल्लंघन पर दंड का प्रावधान रहा है, जिससे ग्रामीणों को भी कोर्इ आपत्ति नहीं होती है, इस संगठन द्वारा सामाजिक संरचना जैसे जन्म से लेकर मृत्यु तक में व्यवस्था में नि:शुल्क सहयोग दिया जाता है। इसके बदले में गांव वाले इन्हे भोजन आदि करा कर सम्मान करते है। अब यह प्रथा धीरे- धीरे विलुप्त हो रही हैं।

बस्तर आदिवासी घोटुल प्रथा ( Bastar me Ghotul in hindi )

बस्तर आदिवासी घोटुल की ऐसी परम्परा जहां जवान युवक एवं युवतियां एक दूसरे से मिलकर भविष्य की रुपरेखा तैयार करते हैं। और जहाँ सूरज ढलने के कुछ ही देर बाद युवक-युवतियां धीरे-धीरे इकट्ठे होने लगते है स्थानीय लोकगीत गाते है और वाद्ययंत्रो की थाप में थिरकते घोटुल तक पहुँचते है समूहों के बीच गाना बजाना चलता रहता है। हंसी-ठिठोली मजाक मस्ती के बीच धीरे- धीरे अँधेरा घिरते ही बड़ा समूह बिखर कर छोटे -छोटे जोड़ों में बंट जाता है। और वहीं युवक-युवतियां अपने प्रिय साथी के साथ मधुर वार्तालाप में सलग्न हो जाते है।

इस दौरान अगर युवक-युवती के विचार आपस में मेल खाते है तो वे जीवनसाथी बनने का निर्णय लेते है। और लगातार रातभर एक दुसरे के साथ रहने के कारण घोटुल में ही प्रेमी जोड़े आपस में यौन अनुभव प्राप्त कर लेते है। और यदि कोई युवती गर्भवती हो जाती है,तो उससे उसके साथी का नाम पूंछ कर उसका विवाह उससे कर दिया जाता है।

इस घोटुल में छोटी उम्र के लड़के एंव लडकियां साफ़ सफाई व पानी की व्यवस्था में लगे रहते है। व साथ ही वे अपने बड़ो के क्रिया-कलाप को देख कर स्वयं भी वैसे बनते चले जाते है। वर्तमान समय में बस्तर की घोटुल प्रथा भी पारम्परिक रूप से चल रही है। लेकिन इस आधुनिक युग में घोटुल की यह प्रथा समाप्त होते जा रही है।

यह भी पढें – बस्तर का आराध्य है आंगा देव जानिए क्या है मान्यता

घोटुल प्रथा किस जनजाति में पाई जाती है

घोटुल प्रथा छत्तीसगढ़ के बस्तर और महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश के पड़ोसी क्षेत्रों के मुरिया एवं माडिया गोंड समुदाय में होती है जो गॉव के लगभग सभी जगह में होता है। घोटुल प्रथा को स्वततंत्र युवा, गणराज्य, के रूप में भी जाना जाता है।

घोटुल किस जनजाति का युवागृह है

घोटुल मुरिया एवं माडिया गोंड समुदाय के युवागृह है बस्तर के अलावा अलग-अलग क्षेत्रों में घोटुल सम्बन्धी परम्पराओं में अन्तर होता है। कुछ जगह में जवान लड़के-लड़कियां घोटुल में ही सोते हैं, तो कुछ में वे दिन भर वहां रहकर रात को अपने-अपने घरों में सोने चले जाते हैं। और कुछ नौजवान लड़के-लड़कियां आपस में मिलकर जीवन-साथी चुनते हैं।

घोटुल पाटा गीत ( Ghotul pata geet hindi me )

गोंडी गोटूल गीत

घोटुल पाटा गीत- शोक गीत या मरनी गीत को कहा जाता है। जिससे बस्तर जिले के गोंड़, मुड़िया जनजातियों में घोटुल पाटा गीत, मृत्यु गीत, शोक गीत, मरनी गीत गाना प्रचलन में है। परजा, भतरा, गोंड़, मुरिया, अबूझमाड़िया जनजाति में मृत्यु गीत गाने की परंपरा है। यह गीत बुजुर्ग व्यक्तियों द्वारा गाया जाता है।

बस्तर में मुख्यतः घोटुल पाटा गीत गाकर आदिवासी क्षेत्रों में परिवार को ढाढस बंधाते हैं। अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।

!! धन्यवाद !!

बस्तर की लोक संस्कृति

 

इन्हे भी एक बार जरूर पढ़े :-

 

Share:

Facebook
Twitter
WhatsApp

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

On Key

Related Posts

बस्तर-क्षेत्रों-का-परम्परागत-त्यौहार-नवाखाई-त्यौहार

बस्तर क्षेत्रों का परम्परागत त्यौहार नवाखाई त्यौहार

बस्तर के नवाखाई त्यौहार:- बस्तर का पहला पारम्परिक नवाखाई त्यौहार Nawakhai festival बस्तर Bastar में आदिवासियों के नए फसल का पहला त्यौहार होता है, जिसे

बेहद-अनोखा-है-बस्तर-दशहरा-की-डेरी-गड़ई-रस्म

बेहद अनोखा है? बस्तर दशहरा की ‘डेरी गड़ई’ रस्म

डेरी गड़ाई रस्म- बस्तर दशहरा में पाटजात्रा के बाद दुसरी सबसे महत्वपूर्ण रस्म होती है डेरी गड़ाई रस्म। पाठ-जात्रा से प्रारंभ हुई पर्व की दूसरी

बस्तर-का-प्रसिद्ध-लोकनृत्य-'डंडारी-नृत्य'-क्या-है-जानिए

बस्तर का प्रसिद्ध लोकनृत्य ‘डंडारी नृत्य’ क्या है? जानिए……!

डंडारी नृत्य-बस्तर के धुरवा जनजाति के द्वारा किये जाने वाला नृत्य है यह नृत्य त्यौहारों, बस्तर दशहरा एवं दंतेवाड़ा के फागुन मेले के अवसर पर

जानिए-बास्ता-को-बस्तर-की-प्रसिद्ध-सब्जी-क्यों-कहा-जाता-है

जानिए, बास्ता को बस्तर की प्रसिद्ध सब्जी क्यों कहा जाता है?

बस्तर अपनी अनूठी परंपरा के साथ साथ खान-पान के लिए भी जाना जाता है। बस्तर में जब सब्जियों की बात होती है तो पहले जंगलों

Scroll to Top
%d bloggers like this: