गोबरहीन मंदिर ऐतिहासिक व धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। बस्तर में विभिन्न राजवंशो जैसे गॅंग, नल , छिन्दक नागवंश , चालुक्य वंश आदि ने कई सालो तक राज किया। इन वंशो के शासको से बहुत से मंदिरो का निर्माण कराया था. जिसमे से कुछ मंदिर आज भी सुरक्षित है और कुछ के नाम मात्र के अवशेष बचे है. जिसमे से अधिकांशत भगवन शिव को समर्पित है. इन्ही मंदिरों में से एक है गोबरहीन मंदिर।
यह मंदिर की अन्य विशेषता यह है कि यहाँ स्थापित प्रतिमाये योनीपीठ मे प्रतिष्ठापित रही है. शिवमंदिर के शिवलिंग जो कि धरती से बाहर तीन फ़ीट और धरती के अन्दर छ फ़ीट से अधिक लम्बाई के है। गोबराहीन के पास ही गढ धनोरा गांव है जहां से इस प्रकार के अन्य टीले एवं प्राचीन प्रतिमाये प्राप्त हुये है। गोबरहीन मंदिर समूह में एक विशाल टीला है. ईंटो से निर्मित टीले में गर्भगृह एवं अंतराल स्थित है। इन मंदिरो के निर्माण काल नल शासको के समय पांचवी से सातवी सदी के मध्य है।
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यहां केशकाल टीलों की खुदाई पर अनेक शिव मंदिरों मिले है। यहां स्थित एक टीले पर कई शिवलिंग है, यह गोबरहीन के नाम से प्रसिद्ध है। यहां महाशिवरात्रि के अवसर पर विशाल मेला आयोजित किया जाता है। इसी तरह केशकाल की पवित्र पुरातन भूमि में अनेक स्थल ऐसे हैं जो न केवल प्राचीन इतिहास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है बलिक श्रद्धा एवं आस्था के अदभुत केंद्र है।
यहाँ तीन मंदिर का समूह है विष्णु मंदिर, गोबरहीन मंदिर एवं बंजारिन मंदिर। विष्णु मंदिर समूह में विष्णु, शिव एवं नरसिंह भगवन के मंदिर सहित कुल दस मंदिर है। बंजारिन मंदिर समूह में चार ध्वस्त मंदिरो एवं आवासीय भवन के अवशेष विद्यमान है. यहां एक पुराना तालाब भी है।
इसकी विशेषता यह है कि यह कभी सुखता नही तथा इसके अलावा इसका पानी आश्चर्यजनक रूप से कई रंगो में परिवर्तित होते रहता है इस धार्मिक स्थल मे महाशिवरात्रि एवं सावन सोमवार के अवसर पर पूजा अर्चना हेतु अन्य जिलो जैसे कांकेर, धमतरी, रायपुर जैसे अन्य जिलो से भी श्रद्घालु पंहुचते है।
कैसे पहुंचें:-
गोबरहीन मंदिर कोंडागांव जिले के केशकाल तहसील में स्थित है यह कोंडागांव -केशकाल मुख्य मार्ग पर केशकाल से 2 कि0मी0 पूर्व बायें ओर 3 कि0मी0 की दूरी पर गोबरहीन नाम का छोटा सा गाँव स्थित है। जो यह गोबरहीन के नाम से काफी प्रसिद्ध है। यहां महाशिवरात्रि के अवसर पर विशाल मेला का आयोजित किया जाता है।
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