बस्तर के जीवन में “बांस” का विशेष महत्व | Bamboo In The Life of Bastar

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बस्तर के जीवन में बांस का विशेष महत्व – बस्तर Bastar में बांस Bamboo बहुतायत में उगता है। यह इस क्षेत्र की जीवन शैली का एक अपरिहार्य हिस्सा रहा है, जिसका उपयोग मछली पकड़ने के जाल बनाने, घरों, टोकरियाँ, कांवड़ (भार ढोने वाले डंडे), संगीत वाद्ययंत्र और भोजन के लिए किया जाता है। बांस बसोर समुदाय के लिए आजीविका का आधार है, जो बांस से बनाई गई वस्तुओं को जीवित क्राफ्टिंग करते हैं।

किसानों के साथ ‘गोटिया’ ग्राहक-संरक्षण संबंधों के हिस्से के रूप में उनके द्वारा तैयार की गई टोकरी और अन्य उपयोगिताओं को अनाज के बदले में बदल दिया जाता है। बांस बस्तर के मानव सभ्यता से जुड़ी प्राचीनतम सामग्रियों में से एक है।

बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में बांस एक मत्वपूर्ण प्राकृतिक सामग्री है जिसका प्रयोग अनेक प्रकार से किया जाता है। वास्तव में बांस के बिना ग्रामीण जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। खेत-खलिहान से लेकर घर-आंगन तक प्रत्येक काम में बांस से बनी चीजें प्रयुक्त की जाती हैं।

घरेलू सामान, कृषि उपकरण से लेकर मछली पकड़ने तथा पक्षियों के शिकार तक के फंदे बांस से बनाये जाते हैं। बांस, आदिवासी एवं ग्रामीण जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। यह केवल रहने के लिए झोपड़ी बनाने के काम ही नहीं आता है बल्कि दैनिक जीवन की प्रत्येक गतिविधि में इसका उपयोग होता है।

इसकी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अक्सर अपने घर के आस-पास बांस के झुरमुट उगाते हैं। बस्तर के ग्रामीण क्षेत्रों में बांस की अपनी एक अहमियत है यहाँ के आदिवासियों ने बांस से बनाई गयी वस्तुओं को अतिरिक्त रूप से अलंकृत करने हेतु इसकी सतह को गर्म चाकू से जलाकर विभिन्न आकृतियां उकेरने की विशेष तकनीक का विकास किया है। वे अपने नृत्य-गानों में बांस से बनाई गई अनेक सज्जा सामग्री एवं वाद्यों का प्रयोग करते हैं, जिन्हें वे इसी तकनीक से अलंकृत करते हैं।

यह भी पढें – बस्तर की प्राकृतिक धरोहर है यंहा की संस्कृति

किसके द्वारा बनाया जाता है?

बांस से बनाई जाने वाली अनेक वस्तुएं तो लोग स्वयं ही बना लेते हैं, परन्तु बांस से टोकरिया, सूपा, झांपी, कुमनी, चोरिया आदि बनाने वाले व्यवसायिक बांस शिल्पी समुदाय के द्वारा भी बनाया जाता है। तूरी, बसोर, कोड़ाकू एवं पारधी बस्तर के ऐसे व्यावसायिक समुदाय हैं जो बांस से उपयोगी वस्तुएँ बनाकर अपनी आजीविका चलते हैं। बस्तर क्षेत्र में यह कार्य पारधी लोग के द्वारा किया जाता हैं।

बस्तर की आम बोलचाल की हल्बी बोली में सामान्य टोकरी को टुकनी कहते हैं। माप और उपयोग के अनुरूप इन्हे टाकरा और दावड़ा भी कहा जाता है। मुर्गा-मुर्गी रखने वाली टोकरी यहाँ गोड़ा कहलाती है। इसके अतिरिक्त सूपा एवं विवाह के मौसम में पर्रा-बीजना भी बड़ी मात्रा में बनाये जाते हैं।

बस्तर में बांस से बनी वस्तुएं विशेष प्रयोग में लाई जाती है:-

  • टुकना –टुकनी – यह सबसे सामान्य एवं सबसे अधिक उपयोग में लाई जाने वाली टोकरी है। यह छोटे-बड़े अनेक आकारों में बनाई जाती है। इसे बांस की सीकों से बुना जाता है। जब यह छोटे अकार की होती है तब इसे टुकनी कहते हैं जब इसका अकार बड़ा होता है तब इसे टुकना कहते हैं।
  • गप्पा – यह एक बहुत छोटी टोकरी होती है जो गोंडिन देवी को चढ़ावे के तौर पर चढ़ाई जाती है। इसमें महुआ के फल भी इकट्ठे किये जाते हैं।
  • सूपा – यह धान और अन्य अनाज फटकने के काम आता है। इसे छोटा – बड़ा कई अकार का बनाया जाता है।
  • चाप – बस्तर में चाप का उपयोग महुआ के फल सूखने एंव बैठने व सोने के काम में लाते हैं।
  • बिज बौनी – यह एक काफी छोटी टोकरी होती है जिसमें धान की पौध अथवा बौने के लिए बीज रखे जाते हैं। इसे किसान बीज बोते समय इसे काम में लाते हैं।
  • डाली – यह बड़ी टोकरियां होती हैं जिसमे धान अथवा अन्य अनाज भर कर रखा जाता है।
  • ढालांगी – यह धान का भण्डारण करके रखने के लिये बनाई जाने वाली यह बहुत बड़ी टोकरी है।
  • ढूठी – शिकार के बाद छोटी मछलिया रखने के लिए अथवा कोई पक्षी पकड़ने के बाद इसमें रखकर घर ले जाने के काम आता हैं।
  • पर्रा-बिजना – यह बहुत छोटे अक्कर का हाथ पंखा और थाली जैस होता है। यह विवाह संस्कारों में इसका प्रयोग किया जाता है।
  • हाथ खांडा – यह भी छोटे आकर के पंखे जैसा ही होता है। विवाह संस्कारों में दूल्हा-दुल्हन को जब तेल लगाया जाता है तब वे इसे पकड़ाया जाता हैं ।
  • पाय मांडा – यह छोटी टोकरी होती है जिसमें दौनों पैर रखकर दूल्हा-दुल्हन विवाह मंडप में खड़े होते हैं।
  • चुरकी – विवाह के समय दुल्हन इसमें धान भर कर खड़ी रहती है।
  • छतौड़ी – यह बरसात और धूप से बचने के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला छाता है।
  • झांपी – विवाह में दुल्हन के कपड़े इसमें रख कर दहेज़ स्वरुप दिए जाते हैं।
  • थापा – उथले पानी में मछली पकड़ने का उपकरण है जो इसे बस्तर में अक्सर तालाबो में एंव खेतो में मछली पकड़ने के उपयोग में लाया जाता है।
  • बिसड़ – खेतों में भरे पानी में मछली पकड़ने का उपकरण।
  • धीर – खेतों में भरे पानी में मछली पकड़ने का उपकरण।
  • चोरिया – बहते नाले में मछली पकड़ने के काम आता है।

बस्तर के ग्रामीण के द्वारा बांसों से बनाई गई सभी प्रकार के समाग्री बाजारों में उपलब्ध होता है जिसे आप असानी से खरीद कर उपयोग कर सकते है यह एक प्रकार का ग्रामिणों के लिए रोजी -रोटी का भी जरिया होता है बांस के बनाये गये सामाग्री पारम्परिक उत्पादों में से अनेक प्रचलन में भी हैं और कुछ अब प्रचलन में नहीं हैं। अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।

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