बस्तर गोंचा पर्व में पेंग फल का विशेष महत्व Peng fall Bastar Goncha festival :- बस्तर के गोंचा पर्व में भगवन जगन्नाथ के प्रति लोगों की आस्था देश के कई अन्य हिस्सों में है। आस्था और भक्ति के प्रतीक गोंचा पर्व में तुपकी और पेंग फल Peng fall का अपना एक विशेष महत्व होता है।
बस्तर के गोंचा पर्व में तुपकी चलाने की एक अलग ही परंपरा होती है, जो कि गोंचा का मुख्य आकर्षण होता है। तुपकी चलाने की परंपरा, बस्तर को छोड़कर पूरे भारत में कहीं भी नही होती है। यह परंपरा पिछले छ: सौ सालों से तुपकी से सलामी देने की परंपरा आज भी कायम है। हर साल मनाए जाने वाले गोंचा महापर्व में भी यह रस्म पूरे विधि- विधान से किया जाता है।
पेंग फल क्या है?
पेंग फल मटर के दाने के आकार का एक फल होता है जो तुपकी में गोली का काम करता है। जिसे स्थानीय बोली में ‘पेंग’ एंव ‘पेंगु’ कहा जाता है, जो एक जंगली लता का फल है.. इसका हिन्दी नाम मालकांगिनी है जो, आषाढ़ महीने में विभिन्न पेड़ों पर आश्रित बेलों पर फूलते फलते हैं।
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गोंचा पर्व में इसके कच्चे और हरे फलों को तोड़कर तुपकी चलाने के लिए बाजारों एंव शहरों में ग्रामीणों के द्वारा तुपकी के साथ बेचा जाता है, और बाकी दिनों में इसके पके हुए बीज को बाजारों में बेचा जाता है। जिससे इसके बीज से तेल निकाल कर शरीर के जोड़ों का दर्द, गठिया के दवा के रूप में, इस तेल से शरीर की मालिश किया जाता है।
गोंचा पर्व में तुपकी :-
तुपकी बांस से बनी एक खिलौना बंदुक है, जिसे भगवान जगन्नाथ के प्रति आस्था के इस गोंचा पर्व में लोग भगवान को सलामी देने के लिये उपयोग करते है, उसे तुपकी कहा जाता है। जो गोंचा महापर्व में आकर्षण का सबसे बड़ा केन्द्र तुपकी व पेंग फल होता है। विगत छः सौ साल से तुपकी से सलामी देने की परंपरा आज भी बस्तर के गोंचा पर्व में प्रचलित है।
कैसे होता है? तुपकी :-
तुपकी बांस की लंबी एक पतली नली से बना हुआ होता है, जो लगभग 3 फीट लम्बा होता है। यह दोनो ओर से खुली होती है। इसका धेरा सवा इंच का होता है जो नली में डालने के लिए बांस का ही एक मूंठदार राड होता है, जिसे लंबी नली के छेद में पेंग फल डाली जाती है। नली का अगला रास्ता पहली पेंग फल से बंद हो जाता है..
जब दुसरी गोली राड के धक्के से भीतर जाती है और हवा का दबाव पड़ते ही पहली गोली आवाज के साथ बाहर निकल जाती है। तुपकी के गोली का रेंज 15 से 20 फीट तक होता है। इसकी मार अगर एक बार अगर सही निशाने पर लग जाए तो आखं से आंसू आ जाते है।
इस तुपकी को गांव के लोगों के द्वारा बनाया जाता है, यह तुपकी बनाने की परंपरा सालों से चली आ रही है इस समय तुपकी बनाने का काम नानगुर ,बिल्लौरी, पोड़ागुड़ा, माँझीगुड़ा, तिरिया ,कलचा, माचकोट के ग्रामीणों के द्वारा किया जा रहा है। इस काम को धुरवा और भतरा जाति के पुरूषों के द्वारा किया जाता है।
जबकि पेंग (मालकांगनी) को बटोरने और तोड़ने की जिम्मेदारी महिलाओं के द्वारा पूरी की जाती है। अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।
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