बस्तर में भगवान विष्णु को समर्पित एक मात्र नारायणपाल विष्णु मंदिर | Bastar Narayanpal Vishnu Temple

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नारायणपाल विष्णु मंदिर Narayanpal Vishnu Templeबस्तर प्राकृतिक संसाधनो से संपन्न यहां की हरी भरी वादियां, नदी पहाड़ झरने अपनी खुबसूरती के कारण पुरे विश्व में अद्वितीय है। ऐसा ही एक ऐतिहासिक मंदिर बस्तर के प्रकृतिक के गोद में स्थित है जो चित्रकोट जलप्रपात के पास नारायणपाल ग्राम में है।

इंद्रावती और नारंगी नदी के संगम पर बसे नारायणपाल ग्राम में भगवान विष्णु को समर्पित एक विशाल मंदिर अवस्थित है। इस मंदिर की खासियत यह है कि बस्तर में भगवान विष्णु को समर्पित एक मात्र सुरक्षित मंदिर है। इस मंदिर को छोड़कर पूरे जिले में अन्य कहीं भी भगवान विष्णु का कोई प्रसिद्ध मंदिर देखने को नहीं मिलता है। यह मंदिर खजुराहों के मंदिर के समकालीन है।

नारायणपाल का मंदिर 11वीं शताब्दी के वास्तुशिल्प का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसे चक्रकोट के छिंदक नागवंशी शासकों द्वारा बनाया गया है। भूर्वाभिमुख यह प्रस्तर मंदिर मध्यम ऊंचाई की जगती पर अवस्थित है।

नारायणपाल मंदिर बस्तर की विरासत में सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक मूल्य के लिए प्रसिद्ध है। जगदलपुर के उत्तरण्पश्चिम की ओर चित्रकोट जलप्रपात से जुड़ा, नारायणपाल नामक गाँव, इंद्रावती नदी के दूसरे किनारे पर स्थित है।

मंदिर निर्माण का इतिहास –

1069 ई0 में चक्रकोट में महाप्रतापी नाग राजा राजभूषण सोमेश्वर देव का शासन था.. सोमेश्वर देव का शासन चक्रकोट बस्तर chakrakot Bastar का स्वर्णिम युग था.. सोमेश्वर देव ने अपने बाहुबल से चक्रकोट के आसपास के राज्यों पर अधिकार कर लिया था।

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उसके सम्मान में कुरूषपाल का शिलालेख कहता है कि वह दक्षिण कौशल के छः लाख ग्रामों का स्वामी था। उसका यश चारों तरफ फैला था। मुमुंददेवी सोमेश्वर देव की माता एवं नागवंशी, नरेश जगदेक भूषण की पत्नी थी,

सोमेश्वर देव की माता गुंडमहादेवी भगवान विष्णु की परमभक्त थी। सन 1111 ई में जब उसकी आयु 100 वर्ष से भी अधिक रही होगी तब उसने अपने दिवंगत पुत्र सोमेश्वर देव की याद में “भगवान विष्णु” का भव्य मंदिर बनवाया।

मुमुंददेवी के 60 वर्षीय पौत्र कन्हरदेव के शासनकाल 1111 ई में इस मंदिर का निर्माण पुरा हुआ। मंदिर के मंडप में स्थित शिलालेख में यही इतिहास दर्ज है।

मंदिर की शिल्प कलाए वास्तु कला एवं विशेषता –

नारायणपाल मंदिर वस्तुतः शिव मंदिर था किन्तु परवर्ती काल में इस मंदिर के गर्भगृह में विष्णु की प्रतिमा प्रतिष्ठापित कराई गई, जिसके कारण इसे नारायण मंदिर कहा जाने लगा। भगवान विष्णु, की यह मूर्ति खंडित अवस्था, में मंदिर में विराजमान है.

मंदिर की भूण्संयोजना में अष्टकोणीय मण्डप, अन्तराल एवं गर्भगृह की व्यवस्था है। मंदिर का द्वार अलंकृत एवं बेशरशैली का सप्तरथ योजना का उच्च साधारण शिखर है।

कैसे पंहुचे नारायणपाल मंदिर-

जगदलपुर के उत्तर-पश्चिमी तरफ चित्रकोट झरने से जुड़ा हुआ, नारायणपाल नाम का एक गांव इंद्रवती नदी के दूसरे किनारे पर स्थित है। कुछ दुर पहले ही इंद्रावती के उपर भानपुरी जाने के लिये पुल बना हुआ है। पुल पार करते ही सड़क से ही इस मंदिर के दर्शन हो जाते है। अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।

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