जोगी बिठाई रस्म– बस्तर दशहरा विश्व प्रसिद्ध है. ये दशहरा बिल्कुल सबसे अलग है, जिसे देखने के लिए लोगों भारत के कोने से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी आते हैं. छ: सौ साल पुराने 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरे की इस परंपरा को 12 से अधिक अनूठी रस्मों के लिए जाना जाता है।
यह रस्में ही अन्य स्थानों पर मनाए जाने वाले दशहरे में से अलग है. यही वजह है कि हर साल बस्तर दशहरा Bastar Dussehra अपने अलग और आश्चर्यजनक रस्मों के चलते हजारों पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है.
परम्परागत मान्यताओं और लोक रीति-रिवाजों के बीच मनाए जाने वाले बस्तर दशहरे में हर रस्म का अपना खास महत्व होता है. इन्ही रस्मों में से एक है जोगी बिठाई रस्म यह रस्म बस्तर दशहरा के लिए बहुत ही खास माना जाता है वैसे तो सभी रस्में बहुत ही अनोखी होती है।
काकतीय वंश के राजा पुरुषोत्तम देव के शासन काल में 14 वीं शताब्दी में शुरू हुई.. बस्तर दशहरे की परम्परा में जोगी बिठाई की रस्म का खासा महत्व होता है। 75 दिनों तक चलने वाले दशहरे के दौरान कई तरह की पारम्परिक रस्में और उत्सव भी मनाए जाते हैं।
जोगी बिठाई रस्म का महत्व
जोगी बिठाई का रस्म करीब 600 वर्षों से चली आ रही है यह रस्म आश्विन शुक्लपक्ष को स्थानीय सिरहासार में जोगी बिठाई की रस्म अदा की जाती है। परंपरानुसार बड़े आमाबाल निवासी जोगी परिवार का युवक हर साल 9 दिनों तक उपवास रख सिरहासार भवन स्थित एक निश्चित स्थान पर योगासन की मुद्रा में बैठा रहता है।
इस तपस्या का मुख्य उद्देश्य दशहरा पर्व को शांतिपूर्वक व निर्बाध रूप से संपन्न कराना होता है। इस रस्म से एक किवदंती जुड़ी हुई है. मान्यता के अनुसार वर्षों पहले दशहरे के दौरान “हल्बा जाति” का एक युवक जगदलपुर स्थित महल के नजदीक तप की मुद्रा में निर्जल उपवास पर बैठ गया था.
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दशहरे के दौरान नौ दिनों तक बिना कुछ खाये पिये मौन अवस्था में युवक के बैठे होने की जानकारी तत्कालीन महाराजा “प्रवीरचंद भंजदेव” को मिली तो, वह स्वयं युवक से मिलने योगी के पास पहुंचे, और उससे तप पर बैठने का कारण पूछा… योगी ने बताया कि, उसने यह दशहरा पर्व को निर्विघ्न शांति पूर्वक रूप से संपन्न कराने के लिये यह तप किया है।
इसके बाद राजा ने योगी के लिये महल से कुछ दूरी पर “सिरहासार भवन” का निर्माण करवा कर इस परंपरा को आगे बढ़ाये रखने का निर्णय लिया। तब से हर वर्ष अनवरत इस रस्म में जोगी बनकर “हल्बा जाति” का युवक नौ दिनों तक तपस्या पर बैठता है. यह परंपरा आज भी जारी है।
रथ की परिक्रमा
रथ की परिक्रमा -जोगी बिठाई रस्म के बाद दंतेश्वरी माई की परिक्रमा करने के लिए रथ यात्रा शुरू की जाती है, जो पंचमी तक चलती है बस्तर दशहरे में रथ परिक्रमा को “बस्तर दशहर” की शान और पहचान माना जाता है.. इसे देखने और इसमें भाग लेने दूर-दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। इस रथ को प्रतिदिन जगदलपुर में एक निश्चित मार्ग पर खिंचा जाता है।
इस रथ में देवी दंतेश्वरी के छत्र को पुजारी के द्वारा आरूण किया जाता है। और उनकी पूजा-अर्चना की जाती है.. फिर उनको सलामी दी जाती है।
फुल रथ की रस्सी को सियाड़ी नामक वृक्ष के छाल से करंजी केसर पाल और सोनाबाल ग्राम के लोगों के द्वारा बनाया जाता है।
फुर रथ की रस्सी को प्रतिदिन अलग-अलग ग्राम के लोगों के द्वारा खींचा जाता है। इस कार्य को “बस्तर तहसील के 32 और तोकापाल तहसील के 4 ग्राम” के लोग करते हैं। इस दौरान उन लोगों में अलग ही उत्साह देखने को मिलता है.. इस दौरान नृत्यगान बैडं बाजे तथा मोहरी की गुंज चारो तरफ गुंजती रहती है…और शाम होने के बाद प्रतिदिन रथ, सिंह द्वार के सामने आकर रुक जाती है।
इसके बाद दंतेश्वरी देवी के छत्र को वापस मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। इस प्रकार लगातार छ: दिनो तक रथ का परिचालन किया जाता है। और अश्विन शुक्ल सप्तमी को बेल पूजा का विधान भी किया जाता है। अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।
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