बारसूर Barsur को तालाबों की नगरी कहा जाता है क्योंकि यहां पर 52 तालाब एक समय में थे जो वक्त के साथ सूक गए लेकिन हां पुरातात्विक धरोहर आज भी यहां पर पूरी तरह सुरक्षित रखे गए हैं और इन्हें अब राष्टिय धरोहर का दर्जा दिया गया है मंदिर Temple के गर्भगृह में भगवान गणेश और नरसिंह के दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है यह छत्तीसगढ़ प्रदेश का एकमात्र देवस्थल है जहां 2 देवताओं की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा एक साथ की गई है।
बारसूर Barsur शब्द की उत्पत्ति बालसूरी शब्द से मानी जाती है, बालसूरी कालान्तर में बारसूरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्राचीन युग में यह नगरी बेहद समृध्द व वैभवशाली नगरी थी बारसूर के चारों दिशाओं में यहाँ के शासकों के द्वारा 10-10 मील दूर तक कई मंदिर और तालाब बनवाये गए जिनमें से कुछ भग्नावशेष आज भी मौजूद है।
पौराणिक कथा के अनुसार दैत्येन्द्र बालासूर की पुत्री उषा और उनके मंत्री कुमांद की पुत्री चित्रलेखा के बीच घनिष्ठ मित्रता थी.. भगवान श्री गणेश इन दोनों के ही आराध्य देव थे इनकी भक्ति देख बानासुर ने एक भव्य मंदिर का निर्मान करवाया जिसमे भगवान गणेश की दो प्रतिमाएं यहाँ एक ही स्थान पर स्थापित करवाईं, दोनों ही सखियां नित्य इनकी पूजा-अर्चना किया करती थी।
भगवान श्री गणेश की ये दोनों प्रतिमाएं एकदन्ती हैं, बड़ी प्रतिमा की ऊँचाई 7 फीट है, जबकि छोटी प्रतिमा साढ़े पाँच फीट की है। स्थापना के समय से ही इन प्रतिमाओं का संरक्षण शासक करते आ रहे। मंदिर परिसर में प्राचीन शिव मंदिर मामा भांचा मंदिर बत्तीसा मंदिर चॅन्द्रादित्य मंदिर के भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं।
यंहा ध्यान आकर्षित करने वाले मंदिरों है जो मामा – भॉचा मंदिर, चन्द्रादित्य मंदिर, बत्तीसा मंदिर और गणेश मंदिर इन मंदिरों के अलावा पूर्व-ऐतिहासिक दिनों का एक विशाल तालाब है जो देखते बनता है।
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मंदिरो का विवरण :-
- मामा – भांचा मंदिर
- चन्द्रादित्य मंदिर
- बत्तीसा मंदिर
- गणेश मंदिर
मामा – भांचा मंदिर Mama Bhanja Temple Barsur
मामा – भांचा मंदिर दो गर्भगृह युक्त मंदिर है इनके मंडप आपस में जुड़े हुये हैं बारसूर के इतिहास की खेल कहानियों को संजोए हुए मामा भांजा का यह मंदिर वीर भांजे के सहास की दास्तां बयां करता है क्योदन्ती के अनुसार एक गंग वंश के राजा के बुद्धिमान भांजे ने उत्कल देश से शिल्प कारों को बुलाकर इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था।

लेकिन राजा इस मंदिर के साथ अपनी भी ख्याति चाहते थे उसने ख्याति के लिए भांजे से युद्ध किया युद्ध में मामा ने भांजे का सर धड़ से अलग कर दिया और कटे हुए सर की प्रतिकृति मंदिर के शीर्ष पर स्थापित करवा दिया तब से यह मंदिर मामा भांजा मंदिर के नाम से जाना जाता है।
चन्द्रादित्य मंदिर Chandraditya Temple Barsur
चन्द्रादित्य मंदिर 11वीं शताब्दी का मंदिर है। यह माना जाता है कि इसका निर्माण सामंती सरदार चंद्रादित्य द्वारा करवाया गया था और उनके नाम पर ही इसका नाम पड़ा। यहां पर पाए गए बारसूर शैली की अनेक मूर्तियों में गर्भगृह के दरवाजे पर विष्णु और शिव की संयुक्त प्रतिमा हरी-हर की भव्य मूर्ति है। खंडित मूर्ति में से महिषासुरमर्दिनी, जिसे स्थानीय रुप से दंतेश्वरी कहते हैं। जिनकी मूर्ति को अभी भी पहचाना जा सकता है।

बत्तीसा मंदिर Battisa Temple Barsur
प्राचीन वास्तुकला की नायाब मिशाल है बत्तीसा मंदिर, 32 पाषण स्तंभों पर टिका ऐतिहासिक बत्तीसा मंदिर 11 वीं 12 वीं सदी ईस्वी में तत्कालीन चिंतक नागवंशी नरेश सोमेश्वर देव की रानी गंगा देवी की इच्छा के चलते इस मंदिर का निर्माण करवाया गया इस मंदिर में दूसरे ओर दो शिवालय है, दोनो शिवलयों के सामने नंदी की कलात्मक प्रतिमाएं स्थापित है।

यह मंदिर पिछले 700 सालों से यहां मौजूद है। बत्तीस स्तंभों पर खड़े बत्तीसा मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर से हुआ है। पत्थरों से बने 32 खंभों पर टिका होने के कारण इसे बत्तीसा मंदिर कहा जाता है। बत्तिसा मन्दिर के अलावा सोलह खंभा और आठ खंभा मन्दिर का भी निर्माण कराया गया था।
गणेश मंदिर Ganesh Temple Barsur
गणेश मंदिर यहां भगवान गणेश की दो विशाल बलुआ पत्थर से बनी प्रतिमायें स्थित है। दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर जहां भगवान गणेश की दो विशालकाय मूर्ति विराजित है। एक की ऊंचाई सात फ़ीट की है तो दूसरी की पांच फ़ीट है।

कैसे पहुचें
बारसुर जगदलपुर से 75 कि0मी0 दूर दंतेवाड़ा जाने के मार्ग पर स्थित गीदम से बारसुर 24 कि0मी0 दूर पर स्थित है। जगदलपुर, दंतेवाड़ा एंव गीदम से बारसुर बस से बड़ी आसानी से पहुचा जा सकता है इस जगह पर आपको एक बार जरूर जाना चाहिए अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताऐ और ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।
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