बस्तर की पहचान शिल्प गुरू जयदेव बघेल- Jaidev Baghel Kondagaon

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जयदेव बघेल Jaidev Baghel भारतीय आदिवासी कला के उन अग्रणि कलाकारों में से एक थे जिन्होंने अपने क्षेत्र की अल्पज्ञात कलाओं को देश एवं विश्व पटल पर प्रसिद्धी दिलाने में मत्वपूर्ण भूमिका निबाही थी। वह अपने बड़ों से गडवाकम के नाम से जानी जाने वाली विशेष कांस्य धातु की ढलाई तकनीक को सीखकर, जयदेव Jaidev को अपने शिल्प को पारंपरिक तरीके से विरासत में मिला है।

जयदेव बघेल Jaidev Baghel बस्तर शिल्पकला के शिल्पगुरु माने जाते हैं. कोंडागांव अंचल की घड़वा और ढोकरा कला, लौह शिल्प, बेल मेटल को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय जयदेव बघेल को दिया जाता है।

जयदेव बघेल का जन्म स्थान

जयदेव बघेल Jaidev Baghel छत्तीसगढ़ के बस्तर Bastar के कोंडागांव Kondagaon भेलवापदर पारा में सन 1949 में पैदा हुए एक पारम्परिक धातु शिल्पी, घढ़वा परिवार आदिवासी कारीगर समुदाय से आते हैं। उनके पिता सिरमन बघेल अपने समय के बस्तर के उन गिने –चुने धातु शिल्पियों में से एक थे जो देवी देवताओं की मूर्तियां बनाने की क्षमता रखते थे।

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इस प्रकार जयदेव का आरम्भिक जीवन और धातुशिल्प का शुरूआती प्रशिक्षण उनके पिता की देखरेख में हुआ। वे कभी स्कूल नहीं गए , बचपन में वे अपने पिता के साथ अपना पैतृक धातु शिल्प का कार्य करते थे और कोंडागांव स्थित दण्डकारणी कार्यालय में चौकीदार का कार्य करते थे।

जयदेव बघेल Jaidev Baghel बस्तर की स्थानीय कला को व्यावसायिक रूप देने और देश के बाहरी भागों में लोकप्रिय बनाने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। बस्तर में आदिवासी कला का पहला व्यवसायिक संस्थान ‘डांसिंग कैक्टस’ आरम्भ किया।

उन्होंने यहाँ के आदिवासियों की काष्ठकला को पहचाना और उसे व्यवसायिक स्तर पर बेचने के लिए दीवार पर सजाने के लिए पैनल बनवाना आरम्भ किया। आज काष्ठकला के जो पैनल , माड़िया युगल , सल्फी झाड़ पर चढ़ता आदिवासी, पेड़ के नीचे बैठी आदिवासी युवती आदि बाजार में बिक रहे हैं।

विदेशों में जयदेव बघेल की पहचान

बस्तर की कला में रूचि रखने वाले जर्मन दूतावास के कुछ अधिकारियों और जर्मन शोधकर्ताओं से उनका परिचय हुआ। इस सब का परिणाम यह हुआ की वे दिल्ली के कला जगत में बस्तर के लोकप्रिय आदिवासी धातु शिल्पी और विशेषज्ञ संपर्क सूत्र स्थापित हो गए। मीरा मुखर्जी Meera Mukherjee ,जयदेव बघेल के लिए बस्तर से बाहर के कला जगत की पहली संपर्क सूत्र थीं। जयदेव न केवल देशी लोगों बल्कि विदेशी लोगों से भी किसी प्रकार सम्प्रेषण स्थापित कर ही लेते थे।

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जयदेव बघेल की आधुनिक मशीन

जयदेव बघेल Jaidev Baghel ने बस्तर में पहले-पहले आधुनिक मशीनों जैसे वेल्डिंग मशीन , ग्राइंडर , कटर आदि का प्रयोग आरम्भ किया। उन्होंने अपनी पारम्परिक धातु ढलाई पद्यति से आधुनिक मूर्ति शिल्प भी बनाये जिन्हें ललित कला अकादेमी , नई दिल्ली की नेशनल एग्जीबीशन और मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी में प्रदर्शित भी किया गया। सन 1975-76 में जयदेव बघेल की धातु मूर्तियों की एकल प्रदर्शनी कोलकाता में आयोजित हुई जिसका उद्घाटन मीरा मुखर्जी ने किया था ।

कोंडागांव में स्थापित सुविधा केंद्र

जयदेव बघेल का सुविधा केंद्र कोंडागांव में स्थापित किया गया है सुविधा केंद्र में उनके साथ रहने और काम करने वाले लगभग बीस गडवा प्रशिक्षु हैं। राष्ट्रीय और कई अन्य पुरस्कारों के विजेता, जयदेव के काम को पूरे भारत में कई प्रदर्शनियों में दिखाया गया है और चित्रित किया गया है वह अपने पैतृक घर में अपने परिवार के साथ रहता है और अपने भाइयों के परिवारों का भी समर्थन करता है।

जयदेव बघेल की राष्ट्रीय पुरस्कार

जयदेव बघेल एक महान शिल्पकार थे जिनके काम की कोई सीमा नहीं थी। 1977 में राष्ट्रीय पुरस्कार के विजेता और कई अन्य पुरस्कारों ने अपने उत्कृष्ट कौशल का परिचय दिया। उनकी ताकत उनके शिल्प की उत्पत्ति पर शोध करने और फिर इसे कई कदम आगे ले जाने की क्षमता में थी।

जयदेव बघेल ने अपनी मूर्तियां राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित की थीं। उन्होंने मास्को, हीडलबर्ग और स्टटगार्ट – जर्मनी, लंदन, ऑक्सफोर्ड, स्कॉटलैंड, ऑस्ट्रेलिया, यूएएसए, टोक्यो-जापान, स्विट्जरलैंड, रोम-इटली, पेरिस-फ्रांस, सिंगापुर, हांगकांग, बैंकॉक में अपने काम का प्रदर्शन किया।

जयदेव बघेल का पूरा जीवन शिल्पकारी को समर्पित रहा. वर्ष 1981 में उन्होंने शिल्पग्राम की स्थापना की थी. 9 नवंबर 14 को उनका निधन हुआ. उम्मीद करता हूँ यहं जानकारी आप को पसंद आई। हो सके तो अपने दोस्तो के साथ भी शेयर जरूर करे। ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।

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