ढोलकल गणेश Dholkal Ganesh – बस्तर प्राकृतिक सुंदरता और संस्कृति के साथ अपने गोद में कई रहस्य और ऐतिहासिक धरोहरों को संजोय हुए है। बस्तर में कई सारे प्राचीन मंदिर एवं प्रतिमाएं है जो विश्व भर में प्रसिद्ध हैं और साथ ही कई सारे मंदिर स्थल है जो पौराणिक कथाओं से संबंधित है उन्हीं में से एक है ढोलकल गणेश मंदिर जिसकी पौराणिक कहानी बहुत ही दिलचस्प है, तो आइए हम जानते हैं 3000 हजार फीट की ऊंचाई पर विराजमान हुए भगवान गणेश के बारे में :-
कहाँ स्थित है ढोलकल शिखर :-
ढोलकल भगवान गणेश प्रतिमा बस्तर के दंतेवाड़ा जिले में दंतेवाड़ा से 15 कि0 मी0 दूर फरसपाल गांव के पास बैलाडीला पहाड़ी में लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। फरसपाल से 3 कि0 मी0 दूर ढोलकल शिखर की पैदल यात्रा प्रारंभ होती है, जो कि 5 कि0 मी0 लंबी पहाड़ी चढ़ाई है वास्तव में ढोलकल शिखर बैलाडीला के जैसा ही एक शिखर है, जो उसी का एक उत्तरी भाग है, जहां पर भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान है, वह ढोलकल का सर्वोच्च शिखर है।
भगवान गणेश प्रतिमा का इतिहास :-
ढोलकल गणेश मंदिर के पीछे कई सारे किदवंती स्थानीय लोगों में प्रचलित है। माना जाता है कि, भगवान गणेश की 3 फीट सुंदर पत्थर की मूर्ति लगभग 10 वीं और 11 वीं शताब्दी के बीच नागा वंश के दौरान बनाई गई थी, जिन्हें इस स्थान पर कौन स्थापित किया यह जानकारी नगण्य है, पर इस संबंध में एक पौराणिक कथा है।
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भगवान परशुराम भगवान शिव से मिलने जाते हैं, तब भगवान शिव और माता पार्वती विश्राम कर रहे होते हैं और द्वारपाल भगवान गणेश होते हैं, भगवान परशुराम जी और गणेश जी मे युद्ध होता है जिससे परशुराम जी का फरसे के वार से उनके एक दांत आधा टूटकर इसी स्थान पर गिराता है। यही गणेश जी एकदंत हुए थे और परशुराम जी का फरसा फरसपाल में गिरता है। वास्तव में गणेश आराधना बस्तर प्रचलित है और यहां लगभग सभी प्राचीन मंदिरों में गणेश प्रतिमा प्राप्त होती है।
इस मूर्ति में भगवान गणेश जी ने अपने उपरी दाएं हाथ में फरसा व उपरी बाएं हाथ में अपना टूटा हुआ दांत पकड़े हुए हैं, निचले दाएं हाथ में माला व बाएं हाथ में मोदक पकड़े हुए हैं। यह मंदिर अपने आप में एक रहस्य लिए हुए है, क्योंकि यहां घने जंगल के बीच 3000 हजार फीट की ऊंचाई में इस मूर्ति को स्थापित करने का कारण किसी को नहीं पता जो अब तक यह रहस्य बना हुआ है।
भगवान गणेश प्रतिमा की पुनर्स्थापना :-
यह मंदिर कुछ वर्ष पूर्व ही दूर दराज लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना है, जब इस मंदिर को वर्ष 2012 में एक पत्रकार ने अपने फोटोग्राफ की मदद से मंदिर को लोगों से रूबरू कराया जिसके बाद से यहां कई सारे लोग भगवान गणेश की प्रतिमा के दर्शन करने पहुंचने लगें।
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26 जनवरी 2017 को कुछ शरारती लागों ने इस प्रतिमा को पहाड़ी से नीचे गिर दीया था ऊंचाई से गिरने कि वजह से यह 56 टुकड़ों में टूट गया था, जिसे बाद में स्थानीय और सरकारी कर्मचारियों ने मिलकर टुकड़ों को ढूंढने के बाद इक्कठा कर पद्म श्री इतिहासकार श्री अरुण शर्मा जी ने इसे बड़े जोर शोर से पुनः स्थापना किया गया। अब फरवरी में 4 तारीख को प्रत्येक वर्ष ढोलकल का मेला आयोजित किया जाता है।
कब जायें ढोलकल गणेश मंदिर :-
ढोलकल गणेश मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय – आप किसी भी मौसम में जा सकते है, हर मौसम में यहां एक नया अनुभव मिलता है। मानसून के मौसम में यहां फिसलन भरे चट्टानों होने के कारण थोड़ा परेशानी होता है पर अगर आप अक्टूबर से जनवरी के बिच में जाते है तो ज्यादा परेशानी तकावट नहीं होगा।
ढोलकल गणेश मंदिर तक कैसे पहुंचें :-
छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से लगभग 370 कि0मी0, जगदलपुर से 100 कि0 मी0 तथा दंतेवाड़ा से लगभग 15 कि0 मी0 की दूरी पर स्थित फरसपाल गांव पहुंचना होता है यहाँ से गाइड के सहारे से घने जंगलों के बीच लगभग 03 कि0मी0 घने जंगल में पैदल चलकर मंदिर तक जाना होता है। ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।
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