झिटकू मिटकी Jhitku Mitki की प्रेमकथा बात प्यार की हो और जिक्र बस्तर Bastar का न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता बस्तर में आदिकाल से प्रेम की गाथा आदिवासियों की पूजा परंपरा का हिस्सा रही है, ऐसी ही कहानी हैं झिटकू-मिटकी Jhitku Mitki की बस्तर में झिटकु-मिटकी की प्रेमकथा वर्षों से ग्रामीण परिवेश में रची बसी है।
झिटकु-मिटकी Jhitku Mitki की कहानी को लोग गपादाई और खोडिया राजा की कहानी के नाम से भी जानते हैं, यह बस्तर Bastar के आदिवासी युवक व युवतियों के बीच प्रेम कथा है, जो बस्तर Bastar के साथ साथ देश विदेश में भी मशहूर है, इसलिए बस्तर को प्रेम का प्रतीक भी कहा जाता है, और ये प्रतीक बने है झिटकू मिटकी :-
झिटकू-मिटकी की प्रेमकथा
बस्तर के कोण्डागॉव kondagaon जिले के बड़ेराजपुर baderajpur के विश्रामपुरी के एक गॉव में सुकल Sukal नाम का एक युवक था, एक दिन उसकी मुलाकात गॉव के मेले में पेंड्रावन Pendrawan गाँव की सुकलदाई Sukldai नाम की युवती से हुई। पहली नजर में ही दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो गया और बात परिवार तक पहुंची गई.
सुकलदाई के सात भाई थे, जो इस रिश्ते के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे, पर सुकलदाई ने बहुत प्रयास करने के बाद मान गए फिर भी भाईयों ने आजीवन सुकलदाई को अपने पास ही रखने के लिए सुकल को अपने घर जमाई बना लिया उसके यहां 03 वर्ष तक रहकर घर का कार्य करता रहा.
यह भी पढें – बस्तर संभाग का एक मात्र ईटो से निर्मित बौद्ध गृह
इसके बाद उनका विवाह हो गया और उन्होंने अपना अलग घर बसाया लिया एक बार सुकल और सुकलदाई के सातों भाइयों ने मिलकर खेती की सिंचाई के लिए एक बांध बनाया। जब बांध बन गया तब रात को देवी ने सपने में सुकलदाई के भाइयों से कहा कि तुम मुझे नरबलि दो तभी यह बांध सफल होगा तब उन लोगों ने सभी प्रकार के प्रयत्न किये, पर उन्हें बलि के लिए कोई आदमी नहीं मिला।
तब उस गांव के कुछ युवक द्वारा सुकलदाई के सात भाइयों को भड़काना शुरू किया, जिससे उनके बातों में आकर उन्होंने सोचा कि क्यों न सुकल को बलि दे दिया जाये, यह सोचकर उन्होंने सुकल की बलि चढ़ा दिया और उसका शरीर को तालाब में फेंक दिया.
इस घटना के बाद तेज बारिश हुई इधर मिटकी अपने पति का इंतजार करते रही। रात तक सुकल नहीं लौटा, तो सुकलदाई बांस की टोकरी और सब्बल लेकर अपने पति को ढूंढने निकली गई चांदनी रात थी उसने देखा कि तालाब में उसके पति सुकल की सर कटी लाश पड़ी है सुकलदाई Sukldai को उनके भाइयों की कारनामा का पता चल गया था,
वह अपने भाइयों की घिनौने कारनामा से दुखी होकर उसने भी उसी तालाब में कूद कर अपनी जान दे दी। ग्रामीण सुबह जब तालाब पहुंचे तो सुकलदाई की बांस की टोकरी और सब्बल तालाब के किनारे मिली और उसकी लाश पानी में मिली। इस तरह प्रेमी जोड़े का अंत हो गया।
इस घटना के बाद से गांव में सुकल Sukl और सुकलदाई Sukldai को झिटकु-मिटकी Jhitku Mitki के नाम से जाना जाने लगा। मिटकी Mitki के मृत्यु होने के बाद से इस देव युगल झिटकू-मिटकी Jhitku Mitki की पूजा की जाती है, इस देव युगल के अनेक नाम हैं.
यह भी पढें – बस्तर की देवी देवताओं में चढ़ाई जाती है पारिजात फूल
इन्हें डोकरी देव, गप्पा घसिन, दुरपत्ती माई, पेंड्रावडीन माई, डोकरा डोकरी, गौडिन देवी और बूढ़ी माई भी कहा जाता हैं, इनकी मूर्ति में देवी माता को सिर पर मुकुट धारण किए , कान में खिलंवा पहने व बायें हाथ में सब्बल और टोकरी लिए बनाया जाता हैं।
ग्रामीणों की आराध्य देवी
बस्तर Bastar के इस क्षेत्र में झिटकू-मिटकी Jhitku Mitki की मान्यता की अपनी परंपरा है, आज भी बस्तर के गांवों में लोग अपने मवेशियों के तबेले में खोडिया देव की पूजा करते हैं.
इसके साथ ही खुद की जान देने वाली गपादाई मिटकी को ग्रामीण आराध्य देवी के नाम से पूजते हैं, आज भी विश्रामपुरी के उसी गांव में वर्तमान समय में भी झिटकु मिटकी Jhitku Mitki के नाम से मंडई मेला का आयोजन किया जाता है।
झिटकू-मिटकी की यह प्रेम कथा बस्तर के कई उपन्यासकारों की किताबों में दर्ज है ये मूर्ति राष्ट्रपति भवन की भी शोभा बढ़ा रही है जिसकी गूंज पूरे देश में है आज के दौर में दोनों की प्रेम कथा ने विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई है ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।
!! धन्यवाद !!
इन्हे भी एक बार जरूर पढ़े :-
- बस्तर का पहला भारतीय हालीवुड हीरो “द टाईगर बाय चेंदरू”
- बस्तर की प्राकृतिक धरोहर है यंहा की संस्कृत
- गुमरगुंडा शिव मंदिर में दी जाती है बच्चों को वैदिक शिक्षा
- मोहरी बाजा के बिना बस्तर में नहीं होता कोई भी शुभ काम