बस्तर Bastar देश का ऐसा स्थल है, जहां आज भी आदिवासी पत्थर Pathar के मकान में पाषाण कालीन सभ्यता के अनुरूप रहते हैं बस्तर में पुण्य धरा के अंक में अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य,दिव्य ज्ञान और पुरातन संस्कृति का अकूत खजाना बिखरा पड़ा है।
जिसे समेटना असम्भव सा लगता है। मनुष्य के अलावा पशु पक्षी यहां तक कि निर्जीव पाषाण तक आपको इस धरती की गौरव गाथा सुनाते हुए मिल जाएंगे। भारत में ऐसे पत्थरों का आवास बस्तर के अलावा कहीं और देखने को नहीं मिलते। जहां लोग घर, देवगुड़ी से लेकर खेतों की बाड़ में पत्थर Pathar का उपयोग करते हैं
आदिम संस्कृति में पत्थर Pathar का बड़ा महत्व होता है। आदिवासियों के देवगुडी उनके श्रृद्धा और विश्वास के केंद्र होते हैं जहां उनके देवी देवता भी प्राय: पाषाण रूप में ही विराजते हैं। घरों में भी जाता, सिल लोढ़ा आदि के रूप में ये पत्थर Pathar इनके बहुत मददगार होते हैं।
आपने मिट्टी की दीवार और खपरैल की छत वाले घर तो बहुत देखे होंगे पर आपको ये जानकर बड़ा अचंभा होगा कि मध्य बस्तर के इलाको में न केवल घर की दीवारें बल्कि छत भी पत्थरों से बनाई जाती है। जिसे पाषाण को बस्तर में पखना कहा जाता है। लेकिन यह स्थल आज भी बस्तर आने वाले हजारो लाखों सैलानियों की जानकारी में नहीं है।
चित्रकोट chitrakoot और तीरथगढ़ tirathgarh मार्ग के मध्य कुछ गांवों में पत्थरों के मकान में रहने वाले इन आदिवासियों की जीवन शैली बस्तर आने वाले सैलानियों और शोधकर्ताओं के लिए रोचक का विषय हो सकता हैं। तोकापाल tokapal और लोहंडीगुड़ा lohndiguda विकासखंड के कुछ गांवों में आज भी सैकड़ों आदिवासी पत्थरों के मकान में रहते हैं और उनकी दिनचर्या में पत्थरों से तैयार किए गए सामग्री शामिल हैं।
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बस्तर में मार्कण्डेय, इंद्रावती , नारंगी आदि नदियों के प्रवाह क्षेत्र के आस-पास एक विशेष आकार के पत्थर बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं जिसे बोलचाल की भाषा में फर्शी पत्थर Pathar कहा जाता है। इसका उपयोग घर की दीवार, छत आदि बनाने में किया जाता है।
बस्तर के चपका, भानपुरी,बालेंगा, कुंगारपाल, लोहंडीगुड़ा, गढ़िया, डिलमिली जैसी जगहों के आस-पास ऐसे घर बड़ी संख्या में दिखाई देते हैं। ये पत्थर जमीन के भीतर परतों के रूप में पाई जाती है। खुदाई के दौरान निकले पत्थरों को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला मोटे व कम चौड़ाई के पत्थर जिनका उपयोग घर की दीवार बनाने में किया जाता है।
यहां तक कि पक्के घर की दीवारों में भी ईंट के स्थान पर इस का ही प्रयोग किया जाता है। इन्हीं पत्थरों से घर की बाड़ियां, खेत आदि को घेरा जाता है। छोटे बड़े पत्थरों को हाथों से कलात्मक ढंग से जमाकर बड़ी ही खूबसूरत दीवारों का निर्माण किया जाता है, जिसे देखने वाला बस देखते ही रह जाता है। और एक विशेष बात इस दीवार में न ही गारा या सीमेंट-रेत के मसाले का उपयोग होता है और न ही इसमें प्लास्टर चढ़ती है।
दूसरे तरह के पत्थर लगभग 3 फीट के वर्गाकार होते हैं। पतले होने के कारण इनका प्रयोग घर की छत के रूप में किया जाता है। पत्थरों के किनारों को परस्पर एक के ऊपर एक इस तरह रखा जाता है, ताकि बारिश का पानी बिलकुल भी घर में नहीं टपके।
गेरूए रंग के ये छत दूर से बड़े ही खूबसूरत दिखाई देते हैं। और कुछ पत्थर 2 से 10 फीट तक ऊंचे हो सकते हैं। प्राय: इनका आकार भी एक जैसा नहीं होता। दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा बीजापुर क्षेत्र में ऐसे पाषाणों का उपयोग मृतक स्तंभों के रूप में किया जाता है। यह पत्थर जिला मुख्यालय से 23 किमी दूर रान सरगीपाल के आस पास पत्थरों की 50 से अधिक से खदानें हैं।
इन पत्थरों का उपयोग लोग अपने घरों की छत के लिए ही नहीं विभिन्ना कार्यों में करते हैं। यहां के आदिवासियों का मकान पूरी तरह पत्थरों से बना हुआ है उम्मीद करता हूँ यहं जानकारी आप को पसंद आई। हो सके तो अपने दोस्तो के साथ भी शेयर जरूर करे। ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।
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