लूप्त होती जा रही बस्तर की यंह परंपरा – Bastar Gedi

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बस्तर में ऐसे बहुत सी पुरानी परंपराये है जो अब समय के साथ ही विलुप्त होती जा रही है बस्तर के इन्हीं परंपराओं में से एक है गेड़ी, जिसे आज भी बस्तर के कुछ ग्रामीण क्षेत्रो मे गेड़ी चढ़ने की पुरानी परंपरा देखने को मिलती है बस्तर में गेड़ी Gedi को गोड़ोंदी और गोंडी में डिटोंग कहते है।

बस्तर की यही विशेषताएं देशी विदेशी सैलानियों के हमेशा आकर्षण व कौतूहल का विषय रही हैं गेड़ी परंपरा भी अब बस्तर से विलुप्त होने की कगार पर है गेड़ी गोड़ोंदी चढ़ने की परंपरा हरियाली त्यौहार मनाने के बाद शुरू की जाती है बस्तर के ग्रामीण क्षेत्रों में गेड़ी Gedi से जुड़ी कुछ मान्यताये भी जुड़ी है,

यह भी पढें – यहां बनते हैं पत्थरों के घर

जिसे हरियाली Hariyali से नवाखानी Navakhani भाद्रपक्ष की नवमीं तक गांव में गोडोंदी को रखते है, और नवाखानी के दुसरे दिन सुबह से गोडोंदी चढ़कर बच्चे गांव घर मे घुमकर चावल-दाल मांग कर एकत्रित करते है, और सभी घरों से मिले चावल दाल को गोडोंदी देवता के सामने रख कर गोडोंदी देवता की विधि विधान से पूजा अर्चना करते है।

उसके बाद सभी गोड़ोंदी को तोड़कर पत्थर की शिला के उपर रखते है और इस पूजा मे मात्र गांव के कुंवारे लड़के ही भाग लेते है, और एक अंडे को उछाल कर टूटे डंडो से उपर तोड़ने का प्रयास करते है, और अगर अंडा डंडे से टकरा कर नहीं टूटता और जमीन में गिर जाता है, तो उसे देवता का विश्वास माना जाता है, और फिर उसे जमीन में गाड़ देते है गोड़ोंदी की यह परंपरा अब भी बस्तर के कुछ-कुछ गांवों में देखने को मिलता है।

कैसे बनती है गोड़ोंदी गेड़ी

गेड़ी Gedi बनाने के लिए लगभग 2-3 सेमी व्यास के कम से कम 60 सेमी दो डंडा की आवश्यकता होती है साथ ही लगभग 3 फीट की उंचाई पर पैर रखने के लिये लकड़ी का गुटका कि आवश्यकता होती है जिसे दंता कहा जाता है गेड़ी में दंता के सामने का हिस्सा जो नीचे लगभग 50 अंश का कोना बनाता है उसे ऊपर से बीचों बीच फाड़ दिया जाता है और दोनों हिस्सों की भीतरी ओर डंडे फंसने के लिए खांचे बना दिए जाते हैं।

जितनी ऊंचाई पर इसे फिट करना होता है उसे डंडे के दोनों तरफ दंता के खांचे को फंसाया जाता है और किनारे से कील ठोक दी जाती है एक-दो कील पीछे की तरफ भी मारा जाता है। जिससे गेड़ी बहुत मजबूत होता है और इस प्रकार गेड़ी गोड़ोंदी तैयार किया जाता है।

गोड़ोंदी डंडा साल और दंता हमेशा चार के तने से ही बनाया जाता था क्योंकि गोड़ोंदी कई दिनों तक खेली या चलाई जाती है और चार की लकड़ी से बना दंता लंबे दिनों तक चलता है यह टूटती या फटती नहीं है। काफी संतुलन एवं अभ्यास के बाद ही गोड़ोंदी चढ़कर बच्चे गांव भर में घुमते है।

गोड़ोंदी प्राय: बच्चों के लिए बनाई जाती है, कई बच्चे तो एक दुसरे को गेड़ी Gedi के डंडे से टकरा कर करतब भी दिखाते है, जिसे गोडोंदी लड़ाई कहा जाता है। उम्मीद करता हूँ यहं जानकारी आप को पसंद आई। हो सके तो अपने दोस्तो के साथ भी शेयर जरूर करे। ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए हमारे Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।

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