बस्तर में धान कुटाई का पारंपरिक तरीका क्या है शायद ही आप जानते होगें बस्तर के अंदरूनी गांवों में परम्परागत वस्तुओं का उपयोग आज भी होता हैं। बस्तर के आदिवासियों का मुख्य भोजन चावल है। यहां वे स्वयं अपने खाने के लिये धान की खेती करते है बस्तर के गॉव में अधिकतर घर दूर-दूर होता है जंहा उतनी सुविधाए भी नहीं होती है जिससे की धान को कुटाया जा सके और खाने के लिये चावल तो चाहिये ही अब धान को कुटे बिना खा नहीं सकते और गॉव में हालर मिल नहीं होने के कारण अपने-अपने घरों में महिलाएं स्वयं अपने हाथ से मूसर musar से धान की कुटाई करते है।
जिससे लगभग सप्ताह भर के लिये एक साथ धान कुट कर रख लेते है। हाथ से कुटे हुये धान में पौष्टिकता अधिक रहती है। जिसे खाने से स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। बस्तर में धान की कुटाई मूसर से की जाती है और आप लोग शायद इससे अपरिचित होगें ये गांवों में बहुत पुराने समय से घरों में धान कुटाई के लिए प्रमुख यंत्र रहा है साथ ही धान को छड़ने का काम भी किया जाता है मतलब इससे सफाई करने का काम भी होता है दरअसल कई बार चावल में धान के अंश रह जाते हैं तो उसकी सफाई मूसर से ही की जाती है और इसके अलावा मक्का, मंडिया, कोदो, कोसरा आदि बीज के ऊपर एक हल्की सी परत होती है जिसे मूसर से ही छड़कर अलग किया जाता है।
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मूसर musar बस्तर के गांवों में अधिकतर सभी घरो में देखने को मिलेगा मूसर को सभी जगह इसी नाम से ही जाना जाता है मूसर की लंबाई लगभग 70 से 80 से0मी0 तक होता है यह लम्बा व अंडाकार का होता है नीचे में बने एक गोलाकार का होता है ताकि हाथ ऊपर न फिसल जाए और नीचे बने गोलाकार हत्थे को मजबूती से पकड़ा जा सके मूसर के हत्थे के नीचे लोहे का मूसलाधार लगा होता है जो 4-5 से0मी0 तक लंबा लोहे का बना रिंग होता है यह रिंग को साम कहा जाता है इसका वजन 1 से 1.5 कि0ग्रा0 तक का होता है।
कोटेन कुटाई के लिए जमीन पर एक छिद्र बना होता है जिसे कोटेन या बाहना कहा जाता है यह लकड़ी पर लगभग 7-8 से.मी. व्यास और लगभग इतनी ही गहराई का छिद्र बनाकर जमीन पर स्थाई रूप से स्थापित कर दिया जाता और इसी में धान की कुटाई की जाती हैं।
मुसर से धान की कुटाई
मूसर musar से धान कुटाई के दौरान मूसर का हत्था एक हाथ की मुट्ठी में होता है तो दूसरे हाथ की ऊँगलियों से कोटेन के धान को संभाला जाता है ताकि धान यत्र-तत्र बिखर न जाएं धान की कुटाई के दौरान एक पैर को जमीन पर सीधा रखने व दूसरे पैर को मोड़ा जाता है फिर थोड़ा सिर नीचे झुककर धान की कुटाई की जाती है मूसर भारी होने के कारण एक हाथ से संतुलन बनाना और कोटेन में निशाना साधना बहुत कटिन का काम होता है।
बस्तर में आज भी मूसर musar के बगैर कई रीति-रिवाज अधूरे से हैं जन्म से लेकर शादी एंव कई अन्य त्यौहारों में भी काम में लिया जाता है मूसर से नवाखाई का पर्व या माहला (सगाई) की रस्म चिवड़ा लाई के बगैर संभव ही नहीं है क्योकिं चिवड़ा लाई की कुटाई मूसल से ही किया जाता हैं अगर गॉव में विवाह हो तो मूसर के बगैर रस्म भी अधूरी ही है क्योंकि विवाह के अवसर पर दुल्हा दुल्हन को चढ़ाई जाने वाले घरेलू हल्दी की कुटाई भी मूसल से होती है ।
यह परम्परा अब धीरे धीरे खत्म हो रहा है यह आधुनिकता के चकाचौन्ध में इससे दूर होते जा रहे हैं पहले हर गॉव और घर में यह प्रचलन में था बड़े सबेरे उठकर यह काम किया करते थे इसका चावल बहुत ही स्वादिस्ट रहता है पर अब गॉव में भी मिल की सुवविधाएं होने के कारण इसे भुलते जा रहे है उम्मीद करता हूँ जानकारी आप को पसंद आई है। हो सके तो दोस्तो के साथ शेयर भी जरूर करे। ऐसी ही जानकारी daily पाने के लिए Facebook Page को like करे इससे आप को हर ताजा अपडेट की जानकारी आप तक पहुँच जायेगी।