आलोर लिंगेश्वरी माता मंदिर alor lingeshwari mata mandir छत्तीसगढ़ बस्तर संभाग के कोण्डागॉव जिले के फरसगांव ब्लाक उत्तर पश्चिम में ग्राम आलोर alor में एक पहाड़ी के उपर गुफा स्थित है। जो लिंगई गट्टा लिंगेश्वरी माता मंदिर lingeshwari mata mandir के नाम से जाना जाता है। इस छोटी से पहाड़ी के ऊपर विस्तृत फैला हुई चट्टान के ऊपर एक विशाल पत्थर है।
बाहर से अन्य पत्थर की तरह सामान्य दिखने वाला यह पत्थर अंदर से स्तूपनुमा है इस पत्थर की संरचना को भीतर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे कोई विशाल पत्थर को कटोरानुमा तराशकर चट्टान के ऊपर उलट दिया गया हो इस मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है जिसकी स्त्री लिंग में पूजा की जाती है। यही कराण है इस मंदिर को लिंगेश्वरी माता मंदिर lingeshwari mata mandir के नाम से जाना जाता है।
परंपरा और लोक मान्यता के कारण इस प्राकृतिक मंदिर में प्रतिदिन पूजा अर्चना नहीं होती है। लेकिन मंदिर का पट वर्ष में एक बार खुलता है। इस मंदिर के दक्षिण दिशा में एक सुरंग है जो इस गुफा का प्रवेश द्वार है। गुफा के अंदर चट्टान के बीचो बीच प्राकृतिक शिवलिंग है जिसकी लंबाई लगभग दो या ढाई फुट होगी प्रत्यक्ष दर्शियों का मानना है कि पहले इसकी ऊंचाई बहुत कम थी
बस्तर का यह शिवलिंग गुफा गुप्त है इसका.द्वार इनता छोटा है कि बैठकर या लेटकर ही यहां प्रवेश किया जा सकता है। गुफा के अंदर 25 से 30 आदमी ही बैठ सकते हैं। पीढ़ियों से चली आ रही इस विशेष परंपरा और लोक मान्यता के कारण भाद्रपद माह में एक ही दिन शिवलिंग की पूजा होती है। इसे शिव और शक्ति का समन्वित नाम दिया गया है।
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लिंगेश्वरी माता मंदिर lingeshwari mata mandir प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष नवमीं तिथि के पश्चात आने वाले दिन इस मंदिर को खोल दिया जाता है यह मंदिर साल में एक ही बार खुलता है. बड़ी संख्या में नि:संतान दंपति यहां संतान की मनोकामना लेकर आते हैं. उनकी मन्नत पूरी होती है. तथा दिनभर श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना एवं दर्शन की जाती है।
इस पट में समय पर पहुंचने से पहले संतान प्राप्ति की मन्नत लिए यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। कहा जाता है की यहां ज्यादातर नि:संतान दंपति संतान की मनोकामना से आते हैं संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति नियमानुसार खीरा चढ़ाते हैं और चढ़ाए हुए खीरे को नाखून से फाड़कर शिवलिंग के समक्ष ही कड़वा भाग सहित खाकर गुफा से बाहर निकलना होता है।
यह प्राकृतिक शिवालय पूरे प्रदेश में आस्था और श्रद्धा का केंद्र है स्थानीय लोगों का कहना है कि पूजा के बाद मंदिर की सतह चट्टान पर रेत बिछाकर उसे पत्थर टिकाकर बंद कर दिया जाता है। अगले वर्ष इस रेत पर किसी भी जानवर के पद चिह्न् अंकित मिलते हैं तो निशान देखकर भविष्य में घटने वाली घटनाओं का अनुमान लगाया जाता है।
वर्ष में एक दिन खुलता है मंदिर
इस मंदिर से जुडी दो विशेष मान्यता
पहली मान्यता
पहली मान्यता संतान प्राप्ति को लेकर है इस मंदिर में आने वाले अधिकांश श्रद्धालु संतान प्राप्ति की मनोकामना को लेकर ही आते है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति को खीरा चढ़ाना आवश्यक होता है। प्रसाद के रूप में चढ़े खीरे को पुजारी पूजा पश्चात दंपती को वापस किया जाता है। दंपती को शिवलिंग के सामने ही खीरे को अपने नाखून से फाड़कर दो टुकड़ों में तोड़ना होता है फिर सामने इस प्रसाद को ग्रहण करना होता है मन्नत पूरी होने पर अगले वर्ष श्रद्धा अनुसार चढ़ावा चढ़ाना होता है।
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दूसरी मान्यता
दूसरी मान्यता भविष्य के अनुमान को लेकर होता है। एक दिन की पूजा होने के बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है। इसके अगले साल इस रेत पर जो चिन्ह मिलते हैं उससे देखकर पुजारी अगले साल के भविष्य का अनुमान लगाते हैं। यदि कमल का निशान हो तो धन संपदा में बढ़ौत्तरी, हाथी के पांव के निशान हो तो उन्नति, घोड़े के खुर के निशान हो तो युद्घ, बाघ के पैर के निशान हो तो आतंक, बिल्ली के पैर के निशान हो तो भय तथा मुर्गियों के पैर के निशान होने पर अकाल होने के संकेत माने जाते है।
कैसे पहोचें
जिला मुख्यालय कोंडागांव से फरसगांव लगभग 38 किलोमीटर एंव फरसगांव से आलोर 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ग्राम आलोर के झांटीबंध पारा में स्थित पहाड़ी में एक पुरानी गुफा है। जिसका द्वार वर्ष में सिर्फ एक ही दिन खुलता है।
निष्कर्ष:-
!! धन्यवाद !!
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