बस्तर जगदलपुर bastar jagdalpur गोंचा पर्व Goncha festival में भगवान जगन्नाथ स्वामी के सम्मान में तुपकी चलाने की अनोखी परंपरा गोंचा पर्व को विश्व में अलग स्थान दिलाता है। जिसे आदिवासी समुदाय के द्वारा भगवान जगन्नाथ स्वामी के प्रति श्रद्धा का प्रतीक रहा बस्तर गोंचा पर्व Goncha festival में चलाये जाने वाले तुपकी की सलामी यह परंपरा बरसो से चली आ रही है.
भगवान जगन्नाथ स्वामी के प्रति आस्था के इस महापर्व में लोगों के द्वारा भगवान को सलामी देने के लिये जिस उपकरण का उपयोग किया जाता है उसे तुपकी कहते है। तुपकी का शाब्दिक अर्थ बस्तर में बंदूक को तुपक कहा जाता है।
बस्तर के राजा पुरूषोत्तम देव के राजत्व काल में बस्तर मे गोंचा महापर्व प्रारंभ किया गया था। गोंचा में तुपकी चलाने की प्रथा पहले सिर्फ कोरापुट में था बाद में यह बस्तर में भी प्रारंभ हो गई।
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बस्तर में ग्रामीणजन अपनी परंपरा को बनाये रखते हुए आज भी तुपकी बनाने का कार्य करते आ रहे हैं। इससे पूर्व बस्तर संभाग के अन्य आदिवासी क्षेत्रों से भी तुपकी बनाने और भगवान जगन्नाथ को सलामी के लिए जगदलपुर गोंचा भाटा में पहुंचते है.
गोंचा Goncha के मौके पर दिन भर शहर में तुपकी की आवाज गूंजती है। तुपक शब्द से ही तुपकी शब्द बना यहां बस्तर गोंचा पर्व रथ यात्रा के दौरान बच्चे, युवक युवतियां रंग बिरंगी तुपकियां लेकर भगवान जगन्नाथ स्वामी के रथ के आसपास सलामी देते नजर आते हैं।
बस्तर गोंचा पर्व के लिए आदिवासियों ग्रामीणजनों के द्वारा तुपकी बनाने का कार्य गोंचा पर्व के एक दो माह पूर्व प्रारंभ कर दिया जाता है। तुपकी गोंचा पर्व और आदिवासी संस्कृति का समन्वय है। गोंचा महापर्व में आकर्षण का सबसे बड़ा केन्द्र तुपकी होता है.
विगत कई साल से तुपकी से सलामी देने की परंपरा बस्तर में आज भी प्रचलित है। तुपकी बांस से बनी एक खिलौना की बंदुक है। बस्तर गोंचा पर्व में भगवान जगन्नाथ स्वामी के सम्मान में बस्तर के आदिवासी समुदाय के द्वारा गार्ड आफ आनर के तौर पर 610 वर्ष पूर्व से शुरू हुई परंपरा आज भी जारी है।
ये माहिर हैं तुपकी बनाने में
तुपकी सालों से चली आ रही इस परंपरा को लेकर इस समय तुपकी बनाने का काम नानगुर ,बिल्लौरी, पोड़ागुड़ा, तिरिया ,कलचा, माचकोट के ग्रामीणों के द्वारा किया जा रहा है। इस काम को धुरवा और भतरा जाति के पुरूषों के द्वारा किया जाता है तुपकी पौन हाथ लंबी बांस की एक पतली नली होती है। जिसे ग्रामीणजनों के द्वारा बांस की एक पोली नली बनाते हैं। तुपकी में जिस बांस की प्रजाति का उपयोग किया जाता है उसे स्थानीय बोली में बाउंस कहते हैं।
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बाउंस की नली में मटर के दाने के आकार का एक फल होता है यह फल तुपकी में गोली का काम करता है। इस फल को पेंग फल कहा जाता है। यह जंगली फल होता है जो मालकागिनी नाम की लता में लगते है। मलकागिनी के फलों को तुपकी में गोली के रूप में उपयोग किया जाता है।
पेंग फल को पतली कमानी से नली में धक्का देकर आगे बढ़ाते हैं। और दोनों फलों के बीच वैक्यूम तैयार होता हे और प्रस्फुटन के साथ फल बाहर आकर निशाने पर लगता है। तुपकी से आने वाली आवाज को तेज करने के लिए मुहाने पर ताड़ के पत्ते, छिंद के पत्ते, कागज, व रंग-बिरंगी पन्नियों से सजाया जाता है जिससे तुपकी बहुत ही सुन्दर नजर आता है।
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