भिंडी की खेती से कमाई, कम लागत में अधिक मुनाफा – bhindi ki kheti kaise kare

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भिंडी की खेती bhindi ki kheti सब्जी अनुसंधान द्वारा उन्नतशील, रोग व कीट अवरोधी तथा संकर किस्मों के विकास के साथ-साथ सब्जी उत्पादन की नवीनतम तकनीकें भी विकसित की जा रही हैं। भिंडी एक लोकप्रिय सब्जी है जिसे लोग लेडीज फिंगर या फिर ओकरा के नाम से भी जानते है. भिंडी की अगेती फसल को लगाकर किसान भाई अधिक से अधिक लाभ को अर्जित कर सकते है।

भिंडी की खेती bhindi ki kheti में बुआई का समय आ गया है। जून के अंतिम और जुलाई पहले सप्ताह में भिंडी की बुआई करनी चाहिए। दरअसल भिंडी में मुख्य रूप से कार्बोहाइट्रेड, कैल्शियम, फॉस्फेरस के अतिरिक्त विटामिन बी और सी की मात्रा पाई जाती है. इसमें विटामिन ए और सी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है।

भिंडी bhindi के फल में आयोडीन की मात्रा अधिक पाई जाती है. वर्गीकरण के आधार पर फरवरी से जून माह के बीच जिस सब्जियों का उत्पादन होता है वह जायद सब्जियाँ कहलाती है, जिसमें कद्दूवर्गीय सब्जियों के अलावा बैंगन, मिर्च के साथ-साथ भिण्डी एक प्रमुख सब्जी है। 

भिण्डी भारत की एक लोकप्रिय सब्जी है पूरे भारतवर्ष में इसकी खेती की जाती है। भिण्डी के अधिकतम उत्पादन हेतु कीट एवं रोगों से इसकी सुरक्षा करना अत्यन्त आवश्यक है। भिंडी bhindi का फल कब्ज रोगियों के लिए विशेष रूप से गुणकारी होता है. भिंड की उपज को प्राप्त करने के लिए संकर भिंडी की किस्मों का विकास कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा किया गया था।

भिंडी की किस्म

भिंडी की वर्षा उपहार किस्म पीलिया रोगरोधी क्षमता वाली है। इसकी पैदावार 40 क्विंटल प्रति एकड़ है। इसके पौधे मध्यम, लंबे व दो गांठों के बीच की दूरी कम होती है। फल लंबे सिरे वाले चमकीले मध्यम मोटाई वाले और 5 कोरों वाले होते हैं। यह किस्म 45 दिन में फल देना आरंभ कर देती है। दूसरी किस्म हिसार नवीन है। यह भी रोगरोधी है। यह किस्म गर्मी व वर्षा के लिए उपयुक्त है। इसकी औसत पैदावार 40-45 क्विंटल प्रति एकड़ है।

तीसरी एचबीएच-142 संकर किस्म है। पीलिया रोगरोधी क्षमता होने के कारण यह वर्षा ऋतु में भी उगाई जा सकती है। इसके फल 8-10 सेंटीमीटर लंबे, मोटाई मध्यम व पांच कोर युक्त आकर्षित होते हैं। इसकी औसत 53 क्विंटल प्रति एकड़ है।

बरसात की भिंडी जून-जुलाई में बोए और अच्छा लाभ कमाएं। एक एकड़ भूमि में 40 से 53 क्विंटल उत्पादन लिया जा सकता है। भिंडी की फसल बोने से पहले मिट्टी और पानी की जांच अवश्य कराएं। फसल के उपयुक्त, उन्नत व संकर किस्मों का बीज बोएं।

खेत का चयन

खेत का चयन  भिण्डी के लिए 6 से 6.8 पी.एच. मान की दोमट, चिकनी दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। खेत की मिट्टी में जीवांश पदार्थ प्रचुर मात्रा में होना चाहिए। बीज उत्पादन के लिए उन्ही खेतों का चयन किया जाता हे जिनमें पिछले एक साल में भिण्डी की फसल ना उगाई गई हो। ऐसा करने से पिछली फसल के एच्छिक पौधों के कारण बीज फसल में संदुषण की संभावना घट जाती है।

भिंडी की खेती bhindi ki kheti की तैयारी 

भिंडी लगाने से पहले खेत की मिट्टी व पानी की जांच अवश्य करा लें  भिंडी के लिए दीर्घ अवधि गर्म और नम वातावरण काफी ज्यादा श्रेष्ठ माना जाता है. भिंडी की खेती bhindi ki kheti खेत में हल व पाटा चलाकर मिट्टी को अच्छी भुरभुरी कर लें।

बुवाई से करीब 3 सप्ताह पहले गोबर की खाद खेत में जुताई करते समय डालें। वर्षाकालीन फसल के लिए खेत को उचित नाप की क्यारियों में बांट लें। बुवाई का समय जून-जुलाई है। खेत में 5-6 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। पंक्ति की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर की दूरी और पौधे का फासला 30 सेंटीमीटर रखे।

बीज को रात को पानी में भिगो दें। भिगोने के बाद बीज को छाया में सुखाकर बुवाई करें। बीज उगाने के लिए 27-30 डिग्री सेल्सियस का तापमान बेहतर माना जाता है. और 17 डिग्री सेल्सियस से कम पर बीज अकुंरित नहीं होते है.इस भूमि  पीएच मान 7.0 और 7.8 होना बेहतर माना जाता है. भूमि की दो से तीन बार जुताई करके भुरभुरी करके उसको और पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए ।

भिंडी  का बीज 

भिंडी  का बीज बसंत-ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए 18-20 कि.ग्रा. तथा वर्षाकालीन फसल के लिए 10-12 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की दर से आवश्यकता होती है। डिब्लर विधि या हाथ से बीजाई करने पर बीज की दर में बचत होती है।

भिंडी के बीज को लगाने के कई विधि है वह विधि है फल्ली जैसे टपकाना।हल के जुताई से बने धारि में भिंडी के बीज को टपकाया जाता है।चाहें तो 5-6 धारि के पश्चात एक धारि को खाली छोड़ा जा सकता है ताकि बाद में भिंडी तोड़ते समय सुविधा होगी।

बुआई का समय

भिंडी की  बुआई अगर हम भिंडी की बुआई की बात करें तो ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुआई फरवरी या मार्च में और वर्षाकालीन भिंडी की बुआई जून और जुलाई में की जाती है. अगर आपको भिंडी की फसल लगातार लेनी है तो तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के मध्य अलग-अलग खेतों में भिंडी की बुआई की जा सकती है ।

सिंचाई कब करें

बीज बोने के पश्चात स्प्रिंकलर से गहरी सिचाई करना चाहिए ताकि सभी बीज अच्छे से भींग जाए जिससे अंकुर अच्छे से निकल सकेगा।भिंडी फसल को कई बार सिचाई की आवश्यकता होती है पर बाद वाला सिचाई पहले वाले सिचाई से कम मात्रा में करना पड़ता है।

खाद डालने की विधि

भिंडी में बुवाई के 3 सप्ताह पहले 10 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ डालें। इसके अतिरिक्त 40 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 24 किलोग्राम फास्फोरस प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। आवश्यकता के अनुसार  किट ,फूल झड़ने से बचाने वाला खाद डाला जा सकता है।

फिर जैसे ही भिंडी तोड़ने लायक होता है तो 2 या 3 बार भिंडी तोड़ने के पश्चात फिर से फल फूल वाला खाद डाला जा सकता है। जैसे ही लगे कि फूल लगने वाला है फल फूल  लगने वाला खाद डाला जा सकता है।

बुवाई से एक दिन पहले फ्लुक्लोरालिन नामक दवा का 400 ग्राम का 250 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। इसके तुरंत बाद 3-4 सेंटीमीटर गहरी रैंक देने से भिंडी की सब्जी व बीज वाली फसलों में खरपतवार का नियंत्रण किया जा सकता है। समय-समय पर भिंडी की निराई-गुड़ाई जरूर करें।

निराई व गुडाई

भिंडी  की निराई व गुडाई नियमित गुड़ाई और निराई से खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए. इसे बोने के 15 से 20 दिन बाद पहली निराई गुड़ाई करना बेहद जरूरी है. खरपतवार नियंत्रण हेतु फ्ल्यूक्लोरिनकी 10 किलोग्राम सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज के बोने से पूर्व मिलाने से प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है ।

खरपतवार नियंत्रण

भिंडी की खेती bhindi ki kheti की फसल के साथ अनेक खरपतवार उग जाते है जो पौधे की विकास एवं बढ़वार पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है. परीक्षणों से पता चलता है कि यदि भिंडी की फसल को उसके जीवनकाल के 35-40 दिनों तक खरपतवार रहित रखा जाए तो वे फसल पर कुप्रभाव नहीं डालते.

पौधों की प्रारंभिक अवस्था में 2-3 बार निराई-गुड़ाई करते रहनी चाहिए. व्यापारिक स्तर पर रोकथाम के लिए वासालिन की 1.5 किलोग्राम मात्रा प्रति 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 3-4 दिन पहले जमीन पर छिड़काव करने से खरपतवार नष्ट हो जाती हैं ।

कटाई व उपज

भिंडी की तुड़ाई हेतु पॉड पिकर यंत्र का प्रयोग करें. इसकी किस्म के गुणवत्ता के अनुसार 45-60 दिनों में फलों की तुड़ाई को प्रारंत्र कर दिया जाता है. 4 से 5 दिनों के अंतराल पर इनकी नियमित तुड़ाई करने का कार्य करना चाहिए । ग्रीष्मकालीन भिंडी फसल में उत्पादन 60-70 क्विंटल प्रति हेक्येटर ही होता है.

भिंडी की तुड़ाई हर तीसरे और चौथे दिन में आवश्यक हो जाती है.तोड़ने में ज्यादा समय हो जाने पर इसका फल कड़ा हो जाता है. फल को फूल खिलने के 5-7 दिन के भीतर अवश्य तोड़ लेना चहिए. उचित देखरेख , उचित किस्म, खाद और उर्वरकों के प्रयोग से हरी फलिंया प्राप्त हो जाती है ।

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